गलत पूजा धूप हवन सामग्री के परिणाम।

सवाल यह उठता है कि हम जो सामग्रियों का उपयोग कर रहे हैं वह हमें क्या परिणाम दे रहा है जिस कारण हम उसका उपयोग कर रहे हैं क्या वह परिणाम हमें मिल रहा है हम परिणाम चाहते हैं अच्छा स्वास्थ्य शुद्ध वातावरण मानसिक शांति संक्रमण से बचाव प्रतिरक्षण क्षमता का विकास मन की स्थिरता बुद्धि का विकास ऊर्जा उत्साह रोगों से मुक्ति ग्रह नक्षत्र देवी देवता की अनुकूलता बुरी चीजों से बचाव वातावरण सुगंध एवं सकारात्मक हो क्या हमें इनमें से कोई भी परिणाम प्राप्त हो रहा है नहीं ना विचार अवश्य करें ऐसा क्यों
क्योंकि हम धूप यज्ञ हवन सामग्री में गलत चीजों का उपयोग करते हैं दूसरा कारण है जब किसी भी जड़ी बूटी में से तेल निकाल लिया जाता है तब उसका जो वेस्ट मटेरियल बसता है उसे लोग धूप यज्ञ हवन सामग्री में उपयोग करते हैं तेल निकल जाने के बाद वनस्पति क्या वह परिणाम दे पाएगी इसी तरह आरा मशीन में लकड़ियां कटती हैं उसके बुरादे पर केमिकल स्प्रे कर लोग बाग हवन सामग्री आप बेचते हैं जड़ी बूटियों के गोडाउन का कचरा इकट्ठा कर उसी की सामग्री बना देते हैं ऐसी सामग्रियां क्या परिणाम देंगी जड़ी बूटियां जिनकी कीमत 1000 से ₹10000 प्रति किलो की है वह आप ₹200 किलो में कैसे ला सकते हैं यह भी तो विचारणीय प्रश्न है गलत सामग्रियों के उपयोग से अनेक संकट खड़े होते हैं आंखें चलती हैं दम घुटता है प्रदूषण फैलता है सांसों में संक्रमण होता है रोगकारी होती हैं बेचैनी घबराहट झुंझलाहट होती है मन बेचैन हो जाता है भगवान प्रसन्न नहीं होते परेशान होते हैं और हमें इन सब बातों से कुछ परिणाम प्राप्त नहीं होता जिस उद्देश्य से हम उसे उपयोग में ला रहे हैं वह उद्देश्य ही विफल हो जाता है हमें सिर्फ उल्टा परिणाम ही प्राप्त होता है नकारात्मक ऊर्जा के रूप में एलर्जी के रूप में डिस्कंफर्ट के रूप में परिणाम प्राप्त होता है ऐसी गलत सामग्री के कारण पूजा-पाठ कर्मकांड पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है इसी क्रम में मिलावटी घी जिसमें पैट्रोलियम जेली एवं पशु चर्बी होती है वह गलत परिणाम देती है गूगल औषधीय वनस्पतियां नहीं होकर गंदे बुरादे को जलाने पर ठिकाना सिर चकराना जैसी की बातें सामान्यतः दिखती हैं इसी तरह कपूर में मोम व केमिकल होता है खुशबू की प्राकृतिक जड़ी बूटियों की जगह हानिकारक केमिकल होता है वह भी गलत परिणाम हमें देता है इसी तरह हानिकारक धूपबत्ती अगरबत्ती में जले हुए ऑयल कोयला और बांस का उपयोग होता है जो वातावरण को कार्बन डाइऑक्साइड वह अन्य हानिकारक यह रोगकारी गैसों से भर देते हैं यह क्या हो रहा है हम इन सब बातों से उदासीन क्यों हो गए क्यों सब इतना गिर गया है धर्म के नाम पर कितनी मिलावट इतना पतन क्यों हुआ क्यों हम प्रकृति से दूर हो रहे हैं क्यों विकृति की ओर जा रहे हैं क्यों हमारा मानसिक आध्यात्मिक व्यवहारिक पतन हो रहा है क्यों हम आत्म केंद्रित और संकीर्ण हो रहे हैं। क्यों हम सिंबॉलिक पूजा करने लगे हैं जो उच्चता श्रेष्ठता हमें विरासत में प्राप्त हुई जो ऋषि वैज्ञानिक ज्ञान हमें पूर्वजों से मिला वह कहां छूट गया आइए मिलकर ढूंढे गलतियां कहां हो रही हैं हम गलत अशुद्ध सामग्रियों का उपयोग क्यों कर रहे हैं केमिकल कचरा सामग्री हमें अस्थिर कर रही है उल्टा परिणाम दे रही है जिस मंदिर ऊर्जा क्षेत्र में हम जाते हैं वहां यह कचरा हानिकारक सामग्री अगरबत्ती हमें बाहर चलानी पड़ती है पंडित जी हमें दुत्कार कर बाहर जलाने को कहते हैं क्योंकि वहां प्रदूषण फैलता है दम घुटता है प्रदूषित वातावरण हो जाता है वहां न खड़े रह सकते हैं ना बैठ सकते जल्दी से बाहर निकलने का मन होता है।धूप यज्ञ हवन की सामग्री में सही सामान जड़ी बूटियों का प्रयोग आवश्यक है कुछ भी जला देना हवन नहीं है धूप नहीं है क्योंकि जिस परिणाम को हम चाहते हैं वह कचरा सामग्री नकली तेल निकली हुई जड़ी बूटियों से संभव नहीं है आइए हम साइंटिफिकली बातों पर विचार करें।

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सामग्री जड़ी बूटियों के बारे में जिसका प्रभाव हमें दिखता और अनुभव होता है उन पर विचार अवश्य करें

अपने आपसे पूछे जाने वाले कुछ प्रश्न
अवश्य पूछें अपने आप से

सवाल करें अपने आप से
यह आपके मानसिक शारीरिक स्वास्थ्य से संबंधित है यह धर्म से संबंधित है आपके जीवन जीने की पद्धति से संबंधित है भारतीय परंपरा पर्यावरण वातावरण प्रकृति पंचतत्व से संबंधित है आस्था विश्वास सनातन संस्कृति मान्यता परंपरा पूजा पाठ धूप दीप हवन रहन-सहन खान-पान वैदिक सभ्यता से संबंधित है

आप धूप दीप हवन क्यों करते हैं पूजा-पाठ ध्यान में यह क्यों आवश्यक है क्या यह एक सशक्त माध्यम है हम शाम को दिया बत्ती क्यों करते हैं धूप यज्ञ हवन आदि से हमें क्या अनुभूति होती है सही सामग्री का चुनाव क्यों महत्वपूर्ण है पूजा में मनभाव उद्देश्य एकाग्रता समय शांति का अभाव क्यों है हमारा धर्म क्या है धूप हवन सामग्री में क्या होना चाहिए क्यों होना चाहिए इसका उद्देश्य क्या है यह कहां और कैसे काम करता है इसका असर सभी प्राणियों पर कैसे पड़ता है क्या वातावरण पर्यावरण बदलते मौसम संधि काल से संबंधित है हमारी वैदिक ऋषि वैज्ञानिक परंपरा वर्षो से क्यों चली आ रही है इसका उद्देश्य क्या था क्या आप संकेतिक पूजा करते हैं
ऋषि वैज्ञानिकता ने इसे धर्म से क्यों जोड़ा क्यों आज तक यह सब हो रहा है विभिन्न जड़ी बूटियों को अध्यात्म पूजा पाठ ज्योतिष आयुर्वेद देवी देवता ग्रह नक्षत्र तंत्र मंत्र दुर्घटना जादू टोना भय व्याधि रोग रक्षा बुद्धि विकास मानसिक शारीरिक क्षमता रक्षण प्रतिरक्षण शक्ति संपन्नता उन्नति संपन्नता ओजस्विता तेजस्विता ब्रह्म तेज सप्त चक्र प्राण ऊर्जा शुभ लाभ से क्यों जोड़ा गया
क्या यह जड़ी बूटियां वनस्पतियां सर्व कल्याणकारी है।
इसमें हर्बलीजम फाइटोथेरेपी ऐथनों फार्माकोलॉजी वायरोलॉजी न्यूरो रिलैक्सेशन अरोमाथेरेपी है।
यह प्राकृतिक हल प्रकृति के माध्यम से प्राकृतिक पोषक तत्वों द्वारा क्यों आवश्यक है
विचार अवश्य कीजिए
आओ जाने इसे खोजें इसे और जानकर सही सामग्री चुने सनातन भारतीय वैदिक वैज्ञानिक परंपरा को जीवित रखे और
मिले अपने आप से अपनी आंतरिक क्षमताओं का विकास करें और पाएं नित्यानंद दिव्य आनंद सर्वानंद परमानंद।

पूजा धूप यज्ञ हवन सामग्री द्वारा हम प्रदूषण हटा रहे है या बढ़ा रहे है।

आज चारों ओर प्रदूषण है पंचतत्व में प्रदूषण ऐसा घुला मिला है कि एक की बात करो तो दूसरा तीसरा चौथा प्रदूषण आ जाता है रोज वायु में मिश्रित विभिन्न गैस से हम प्रभावित हो रहे हैं इन 22 प्रकार की हानिकारक गैसों का पता डब्ल्यूएचओ को चला है जो वायु में प्रदूषण फैला रही हैं शहर हाफ रहे हैं और बीमार हैं क्या हम गैस चेंबर में रहे हैं
70% लोगों को शुद्ध पानी पीने के लिए नहीं मिल रहा रसायन और जल भूमि पर ऐसा घुल मिल रहा है जिससे भूगर्भ जल चक्र प्रदूषित हो चुका है भोजन रसायन युक्त मिल रहा है
यह कैसी प्रगति है विज्ञान के चमत्कार हमारा जीवन सहज बनाते हैं पर प्रकृति चमत्कार धूप हवा पानी वनस्पति के बिना जीवनी संभव नहीं है जबकि हमारे संस्कृति का अर्थ जीवन की शुद्धि और उससे जुड़ी समृद्धि है इस प्रकार के वातावरण से मानसिक प्रदूषण बढ़ रहा है हमारे देश में 40% से अधिक लोग किसी न किसी रूप में असवाद से ग्रसित हैं पर्यावरण नष्ट होने से अनेकों बीमारियां हो रही हैं डब्ल्यूएचओ यह भी कहता है कि अन्य देशों की अपेक्षा हमारे देश में प्रदूषण के कारण मनुष्य की सांस लेने की क्षमता 40% से भी कम है
असली जीडीपी हवा पानी धूप मट्टी व पर्यावरण है
अनेक प्रकार के प्रदूषण से हम घिरे हैं रसायन प्रदूषण भोजन प्रदूषण जनसंख्या प्रदूषण मिट्टी का प्रदूषण ग्लोबल वार्मिंग क्लाइमेट चेंज इन सब के कारण मानसिक प्रदूषण डिप्रेशन स्ट्रेस नेगेटिव थॉट असुरक्षा की भावना सुसाइडल टेंडेंसी बढ़ रही है कार्य क्षमता प्रजनन क्षमता बौद्धिक विचार घट रहे है। आध्यात्मिक अवनति डर भय घबराहट बेचैनी है मन भावना नकारात्मकता अविश्वास विचारों का संक्रमण हर तरफ है।
इन सब से बचने के लिए हम भगवान की शरण में जाते हैं पूजा पाठ करते हैं मेडिटेशन करते हैं इन सब को करने के लिए माध्यम के रूप में हम पूजा सामग्रियों का उपयोग भी करते हैं
धूपदीप हवन भी करतै है।
वही पूजन सामग्री रसायनिक प्रदूषण युक्त है केमिकल युक्त है नकली है वह प्रदूषण को हटा नहीं रही है बल्कि प्रदूषित जहरीला वातावरण बना रही है
धूप यज्ञ हवन द्वारा हम प्रदूषण को हटाते हैं धूप यज्ञ हवन में उपयोगी वनस्पतियां जड़ी बूटियो का कार्य प्रदूषण मुक्त स्वस्थ वातावरण बनाना है जबकि हम गलत सामग्रियों का उपयोग कर प्रदूषण बढ़ा रहे हैं बाज़ार नकली से भरा पढ़ा है सही कहां कैसा है खोज का विषय है।
विचार अवश्य कीजिए।

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Object of Pooja path and importance of medium (samagri)

पूजा-सामग्री धूप दीप हवन आरती का वैज्ञानिक महत्व, जानिए
हिंदू सनातन धर्म क्या है उत्तर यह जीवन जीने की पद्धति इसका पहला उद्देश्य स्वास्थ्य का संरक्षण है
पूजा-पाठ ध्यान का मतलब है स्वयं से स्वयं का मिलना अपनी अंतरात्मा से साक्षात्कार करना इसीलिए पूजा के पंचोपचार दस उपचार
सोलह उपचार द्वारा मन
की एकाग्रता पाना है सामग्री से तात्पर्य वह आपको आपके स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाए जिससे शरीर की शुद्धि के साथ विचारों की भी शुद्धि हो
वातावरण में कीटाणुओं का नाश करना शरीर की संभावित कमी को पूरा करना प्रभाव क्षेत्र सुगम श्रेष्ठ शुद्ध उर्जायुक्त बनाना रंगों का संतुलन रोग उपचार मानसोपचार एक्यूप्रेशर चिकित्सा नेचुरल पंचभूत शुद्धि
सुगंध चिकित्सा जैसे अनेक प्रकार की अल्टरनेटिव मेडिसिन का उपयोग वैज्ञानिक रूप में किया जाता है यह एनवायरमेंट क्लीनिक ईश्वर से कनेक्ट करने वाला अपने आप से अपने आप को जोड़ने वाला सशक्त माध्यम है सभी प्रकार की जड़ी बूटी अनेक गुणों से युक्त होती हैं मौसम परिवर्तन के कारण होने वाले संक्रमण से बचाव के लिए भी सामग्री का महत्व है जो पंचतत्व में हुई गड़बड़ी को संतुलित करती हैं
ईश्वर को प्रकृतिक सामग्रियों से शुद्ध श्रेष्ठ समर्पण भले ही समर्पण सूक्ष्म हो लेकिन शुद्ध व साफ हो क्योंकि यह आपके स्वास्थ्य सरक्षण से जुड़ा हुआ है यह कंपैनियन मटेरियल्स वातावरण से प्रदूषण हटाकर जर्मस हटाकर
डीटॉक्सिफाई डिसइनफेक्ट कर सेनीटाइज करता है
‘…गन्धाक्षतम्, पुष्पाणि, धूपम्, दीपम्, नैवेद्यम् समर्पयामि।’

व्यक्ति की जिसमें जैसी श्रद्धा है, वह वैसा करता है।
शास्त्रों में उपयोग किए गए शब्दों पर ध्यान अवश्य दें उनका अर्थ समझे जैसे ऊपर उपचार का प्रयोग किया गया था इसी तरह
आरती को ‘आरात्रिक’ अथवा ‘नीराजन’ क्यों कहते हैं विचार कीजिए
एक उदाहरण पर ध्यान दें शंख-ध्वनि और घंटे-घड़ियाल पूजा के प्रधान अंग हैं। किसी देवता की पूजा शंख और घड़ियाल बजाए बिना नहीं होती। सन् 1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया था कि शंख ध्वनि की शब्द लहरें बैक्टीरिया नामक संक्रामक रोग कीटों को मारने में उत्तम और सस्ती औषधि है। प्रति सेकंड 27 घनफुट वायु शक्ति के जोर से बजाया हुआ शंख 1200 फुट दूरी तक के बैक्टीरिया जंतुओं को मार डालता है और 2600 फुट तक के जंतु इस ध्वनि के कारण मूर्छित हो जाते हैं। बैक्टीरिया के अतिरिक्त हैजा, गर्दनतोड़ बुखार, पेट के कीड़े भी कुछ दूरी तक मरते हैं। ध्वनि विस्तारक स्थान के आस-पास का स्थान तो निःसंदेह निर्जंतु हो जाता है। मृगी, मूर्च्छा, कंठमाया और कोढ़ के रोगियों के अंदर शंख ध्वनि की जो प्रतिक्रिया होती है वह रोगनाशक कही जा सकती है।
इसलिए भारतीय पूजा का महत्व है इसी लिए सामग्री का काफी महत्व है जिस के संपर्क में रहने से आप निरोगी रहते हैं कचरा सामग्री केमिकल युक्त सामग्री के उपयोग से आप बीमार पड़ते हैं भगवान भी अप्रसन्न होते हैं मन उच्चाटन होता है
पूजा का उद्देश्य विफल होता है इसलिए सही शुद्ध असली सामग्रियों का ही उपयोग करें स्वस्थ रहें प्रसन्न रहें पूजा-पाठ को सार्थक करें आरोग्य शक्ति संपन्नता सकारात्मकता सफलता पाएं टेंशन रिमूव करें यह सनातन टीकाकरण है जिससे माइंड बॉडी सोल का शुद्धिकरण होता है कंसंट्रेशन आता है यह होलिस्टिक मेडिसिन है

gaureesh yagya

वैदिक साइंस पूजा सामाग्री धूप यज्ञ हवन सामग्री

वैज्ञानिक उत्तर
Let us think scientifically

Eco clean ancient Veda therapy herbalism

The holistic management
Ancient heritage
Powerful energy with positivity

जब हम यज्ञ करते हैं तब अग्नि के साथ मंत्रोच्चारण द्वारा हम दोनों प्रकार की एनर्जी एक साथ प्राप्त करते हैं इन दोनों के सहयोग से फिजिकल साइकोलॉजिकल और स्प्रिचुअल लाभ भी प्राप्त करते हैं यह बात विज्ञान सम्मत है कि हमारे पास दो प्रकार की बेसिक एनर्जी इस फिजिकल दुनिया में है हीट एंड साउंड अर्थात ताप और स्वर अब हम सामग्रियों पर बात करें तो इसमें विभिन्न प्रकार के घटक का समायोजन कॉन्बिनेशन होता है जो हमें विभिन्न प्रकार से लाभ देती हैं हम उन जड़ी बूटियों के अलग-अलग एंगल से अलग-अलग प्रकार से लाभ प्राप्त करते हैं जिसका वैदिक उत्तर हमें मिलता है वैज्ञानिक उत्तर आज के परिपेक्ष में उतना ही आवश्यक है

सबसे पहले हम इकोक्लीन वातावरण पर विचार करते हैं आधुनिक जीवन पर्यावरण और धूप यज्ञ हवन द्वारा ग्रीन एवं ऑर्गेनिक मैनेजमेंट

जब पशु बीमार होता है तब वह जंगल में ऐसी वनस्पतियों को खाता है ढूंढता है जो फाइटोकेमिकल युक्त होते हैं जिसमें एंटी वायरल एंटी बैक्टीरियल एंटी सेप्टिक एंटी एंटीबायोटिक एंटी-फंगल
तत्व होते हैं हवन में भी हाइड्रो कार्बन के आंशिक ऑक्सीकरण जटिल कार्बनिक पदार्थों के गठन से एल्डिहाइड का उत्पादन होता है जो शक्तिशाली एंटीसेप्टिक है फॉर्मल डिहाइड गैस के बनने से कीटाणु रहित वातावरण बनता है जिसे हॉस्पिटल में डिसइन्फेक्श के लिए प्रयोग किया जाता है वाशपशील तेलों एवं एरोमा तेलों कै जीवाणु नाशक धुएं के संपर्क में उत्पन्न उन गैसों द्वारा जीवाणु का नाश होता है मस्तिष्क कोशिका नवीनीकृत होती है ऑक्सीडेशन हाइड्रोकार्बन
इसी तरह फूड प्रिजर्वेशन मैं फार्मिक एसिड और एसिटिक एसिड दोनों से कीटाणु नाइस व संरक्षण मिलता है यज्ञ के धुए में यह प्रभाव है
यज्ञ में ऐसी जड़ी बूटियां होमी जाती हैं जो सीधे मस्तिष्क पर असर करती हैं न्यूरोलॉजिक सेशन रेगुलेशन पर काम करती हैं एवं एंटीबायोटिक गुणों से युक्त होती हैं सुगंध के लिए जड़ी बूटियों का मिश्रण तैलीय द्रव्य एलकेलाइट वोटाइल ऑयल की फ्यूम्स डिफ्यूज्ड नॉनबैक्टीरियल पैरासाइट किल करती है दूर भगाती है सैनिटाइज इन्वायरमेंट बनाती है
एथीनो फार्मोकोलॉजी जनरल में यह सब प्रकाशित हो चुका है क्या आप जानते हैं हवन यज्ञ की विधि अमेरिका में सन 2007 मैं ही पेटेंट हो चुकी है जिसका पेटेंट नंबर डब्लू ओ 2007 072 500 ए2 है
धूप यज्ञ हवन में दो बातें होती हैं आप नीचे क्या चला रहे हैं जो लकड़ियों के रूप में होता है जिसका कोयला नहीं बनता है जिसकी डायरेक्ट राख बनती है ऐसी 60 प्रकार की लकड़ियां जड़ी बूटियां होती हैं एवं देसी गाय के गोबर से बने उपले होते हैं आप ऊपर से अनेक वनस्पतियों का मिश्रण डालते हैं इस प्रकार धी की धारा चम्मच से डाली जाती है इसी प्रकार की जड़ी बूटियों के प्रयोग से विषाणु कीटाणुओं रोगाणुओं का नाश होता है हवा में तापमान 250 डिग्री से 700 डिग्री तक होता है इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन वायुमंडल में उपस्थित ऑक्सीजन से मिलकर भाप बनाती है कार्बन डाइऑक्साइड प्लस हाइड्रोजन डाइऑक्साइड प्लस
112000 कैलोरी बराबर एच सी एच ओ प्लस ऑक्सीजन
एनबीआर एवं अन्य शोधों से यह स्पष्ट है कि उक्त गैस अस्पतालों में संक्रमण को हटाने में प्रयोग होती हैं धुआं द्वारा 90% तक विषाणु कम होना पाए गए हैं यह वातावरण 15 से 20 दिनों तक वातावरण में रहता है हवन के वैपर एवं एरोमेटिक स्ट्रांग ऑक्सीडेंट का कार्य करते हैं हवन सामग्री की जड़ी बूटियां वेपर के माध्यम से नाक द्वारा सीधे फेफड़ों में जाती हैं एवं चमड़ी वा रोम के माध्यम से शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुंचती हैं एलोपैथी डॉक्टर द्वारा इनहेलेशन इसट्रांसल द्वारा सीधे ब्लड में दवाई पहुंचाई जाती है इंजेक्शन या टेबलेट से यह बेहतर होते हैं डॉक्टर द्वारा ट्रांसडर्मल पैच भी उपयोग किए जाते हैं इसी प्रकार से यज्ञ व पर भी सीधे हमारे ब्लड में शरीर में पहुंच जाते हैं यज्ञ हवन में एथिलीन ऑक्साइड पोपलीन ऑक्साइड विटा पॉपी लैकटॉन ऐसीटिलिन जैसी गैसों का निर्माण होता है यह लिपिड वेपर वातावरण में एवं हमारे शरीर में 2 माइक्रोन से भी छोटे पीपीएम को एब्जॉर्ब करके वायरस को निष्क्रिय कर देते हैं यज्ञ हवन के वैपर नाक के माध्यम से शरीर में जब प्रवेश करते हैं तब हमारी हाइपोथेलेमस ग्रंथि सक्रिय हो जाती है इसी तरह मनोरोग जैसे एडी डिप्रेशन उत्तेजना चिंता बेचैनी झुंझलाहट घबराहट वाले रोग एवं मिर्गी के दौरे वाले व्यक्ति जब इस हवन यज्ञ के संपर्क में आते हैं तो न्यूरो ट्रांसमीटर बढ़ जाते हैं गाबा सीरो निेन डोपामिन
जिससे हमें अच्छा लगता है हम खुश होते हैं व्यक्ति की डिप्रेशन एवं सुसाइडल टेंडेंसी कम हो जाती है टी सेल व्यक्ति की बीमारी से लड़ने में मदद करता है हवन में जो न्यूरो ट्रांसमीटर गाबा सिरोनिन बढ़ते हैं वह टी सेल को अनुशासित करने में मदद करते हैं सेंट्रल नर्वस सिस्टम को सीधे प्रभावित करते हैं सी डी ए डी
वातावरण में प्रदूषण के कारण कार्बन मोनो ऑक्साइड कार्बन डाइऑक्साइड नाइट्रोजन ऑक्साइड सल्फर ऑक्साइड ओजोन व अन्य हानिकारक घटकों पर असर होकर हानिकारक गैसै 80 प्रतिशत कम हो जाती हैं बैक्टीरिया कीटाणु माइक्रोेविअल भी 80 परसेंट कम हो जाते हैं अनहाइजीनिक जर्म समाप्त हो जाते हैं इसी प्रकार बायोटेक्नोलॉजी पेड़ पौधे जानवर पर भी असर होता है यह
वैदिक यज्ञ साइंस है।

Dr Rajendra Kumar Dubey

हाइड्रोसोल जल क्या होते है, क्यूँ है पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा में इनका महत्त्व 

पूरक और वैकल्पिक औषधीय दवा प्राकृतिक पौधों की एक विस्तृत विविधता और रूप देती है, जो मानव विकृति के पीछे के कई रहस्यों को मुक्त करने के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (जो) के रिकॉर्ड के अनुसार, विकासशील देशों में अस्सी प्रतिशत आबादी स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए पारंपरिक जड़ी-बूटियों पर निर्भर है। हर्बल उत्पाद जिनमें प्राकृतिक पौधों के अर्क (चरक संहिता और सुश्रुत संहिता या अन्य पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में वर्णित आयुर्वेद में उपयोग किए जाते हैं), पौधे से प्राप्त यौगिक (इसके अलावा फाइटोकॉन्स्टिट्यूएंट्स के रूप में संदर्भित), सटीक पौधों के हिस्सों (जड़, तना, छाल) के अर्क शामिल हैं। पौधे का जीवन, अंतिम परिणाम, और बीज), आहार पूरक आहार और न्यूट्रास्यूटिकल्स आम से लेकर असामान्य संक्रामक और गैर-संक्रामक बीमारियों के इलाज में व्यापक अनुप्रयोग का पता लगाते हैं।

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हाइड्रोसोल, जिसे “फूलों के पानी” के रूप में भी जाना जाता है, ताजी पत्तियों, फलों, फूलों और अन्य पौधों की सामग्री के आसवन द्वारा निर्मित होते हैं। आवश्यक तेलों के समान गुणों के साथ, ये सुगंधित पानी बहुत कम केंद्रित होते हैं। उनके आवश्यक तेल समकक्ष की तुलना में उनकी सुगंध अक्सर नरम और सूक्ष्म होती है। इन सुगंधित उत्पादों में आमतौर पर उनके आवश्यक तेल के समान गंध होती है, लेकिन इसमें एक हरा नोट भी हो सकता है। यह पौधों की सामग्री में पानी में घुलनशील घटकों से आता है जो आवश्यक तेल में मौजूद नहीं होते हैं।

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हिन्दू पूजन सामग्री का महत्त्व 

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, किसी भी अनुष्ठान, त्योहार और किसी भी अन्य धार्मिक समारोह में पूजा सामग्री / पूजा सामग्री की एक विशिष्ट सूची की आवश्यकता होती है। विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के लिए, विभिन्न प्रकार की पूजा सामग्री की आवश्यकता होती है, नियमित दैनिक पारंपरिक अनुष्ठानों के अलावा, दिवाली, दशहरा, बैसाखी, राखी, जन्मदिन, शादी समारोह आदि जैसे विशेष अवसरों पर बहुत विस्तृत पूजा की जाती है। इन दिनों को शुभ माना जाता है और हमें हमारे अद्भुत जीवन प्रदान करने के लिए हम भगवान को धन्यवाद देते हैं। इन पूजाओं और प्रार्थनाओं को करने के लिए, कई सामग्रियों की आवश्यकता होती है लेकिन शुद्ध और प्राकृतिक पवित्र, शुद्ध, प्राकृतिक पूजा सामग्री आजकल दुर्लभ है।

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एसेंशियल ऑयल क्या है और क्या है इनका महत्त्व ?

एसेंशियल ऑयल  केंद्रित पौधे के अर्क होते हैं जो प्राकृतिक गंध और स्वाद, या उनके स्रोत के “सार” को बनाए रखते हैं। आवश्यक तेल पौधों से निकाले गए यौगिक होते हैं। तेल पौधे की गंध और स्वाद, या “सार” को पकड़ लेते हैं। अद्वितीय सुगंधित यौगिक प्रत्येक आवश्यक तेल को उसका विशिष्ट सार देते हैं। एसेंशियल ऑयल आसवन (भाप और/या पानी के माध्यम से) या यांत्रिक विधियों, जैसे कोल्ड प्रेसिंग के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं। एक बार सुगंधित रसायनों को निकालने के बाद, उन्हें एक वाहक तेल के साथ मिलाकर एक उत्पाद बनाया जाता है जो उपयोग के लिए तैयार होता है। आवश्यक तेलों से सुगंध को अंदर लेना आपके लिम्बिक सिस्टम के क्षेत्रों को उत्तेजित कर सकता है, जो आपके मस्तिष्क का एक हिस्सा है जो भावनाओं, व्यवहारों, गंध की भावना और दीर्घकालिक स्मृति में भूमिका निभाता है।

सेंशियल ऑयल के स्वास्थ्य लाभ

कुछ सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए आवश्यक तेलों और अरोमाथेरेपी का उपयोग किया गया है।

तनाव और चिंता

यह अनुमान लगाया गया है कि तनाव और चिंता से ग्रस्त 43% लोग अपने लक्षणों को दूर करने में मदद के लिए वैकल्पिक चिकित्सा के किसी न किसी रूप का उपयोग करते हैं।

अरोमाथेरेपी के संबंध में, प्रारंभिक अध्ययन काफी सकारात्मक रहे हैं। कुछ आवश्यक तेलों की गंध चिंता और तनाव के इलाज के लिए पारंपरिक चिकित्सा के साथ काम कर सकती है। दिलचस्प बात यह है कि मालिश के दौरान आवश्यक तेलों का उपयोग तनाव को दूर करने में मदद कर सकता है।

सिरदर्द और माइग्रेन

90 के दशक में, दो छोटे अध्ययनों में पाया गया कि प्रतिभागियों के माथे और मंदिरों पर एक पेपरमिंट ऑयल और इथेनॉल के मिश्रण को लगाने से सिरदर्द के दर्द से राहत मिली।

नींद और अनिद्रा

यह दिखाया गया है कि लैवेंडर के तेल को सूंघने से प्रसव के बाद महिलाओं की नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है, साथ ही हृदय रोग के रोगी भी। अधिकांश अध्ययनों से पता चला है कि तेलों को सूंघना – ज्यादातर लैवेंडर का तेल – नींद की आदतों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

सूजन को कम करना

यह सुझाव दिया गया है कि आवश्यक तेल भड़काऊ स्थितियों से लड़ने में मदद कर सकते हैं। कुछ टेस्ट-ट्यूब अध्ययनों से पता चलता है कि उनके विरोधी भड़काऊ प्रभाव हैं।

एंटीबायोटिक और रोगाणुरोधी

एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के उदय ने अन्य यौगिकों की खोज में रुचि को नवीनीकृत किया है जो जीवाणु संक्रमण से लड़ सकते हैं।

अन्य उपयोग

अरोमाथेरेपी के बाहर आवश्यक तेलों के कई उपयोग हैं। बहुत से लोग उनका उपयोग अपने घरों को सुगंधित करने या कपड़े धोने जैसी चीजों को तरोताजा करने के लिए करते हैं। उनका उपयोग घर के बने सौंदर्य प्रसाधनों और उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक उत्पादों में प्राकृतिक सुगंध के रूप में भी किया जाता है।

एसेंशियल ऑयल के लिए अरोमाथेरेपी एकमात्र उपयोग नहीं है। उनका उपयोग घर के अंदर और आसपास, प्राकृतिक मच्छर विकर्षक के रूप में, या औद्योगिक रूप से सौंदर्य प्रसाधन बनाने के लिए किया जा सकता है।

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यज्ञों के प्रभाव , भेषज यज

ऋतु-सन्धि तथा दिन-रात की सन्धि यज्ञ करने के लिए सर्वोपयुक्त काल है। सन्धिकाल, संक्रमणकाल होता है। प्रकाश ऋण, धन भागों में विभक्त हो जाता है, यह रोग-कीटाणुओं की वृद्धि के लिए बड़ा ही अनुकूल समय होता है और उसकी आक्रमण शक्ति भी इस समय बढ़ जाती है। संख्या और शक्ति बढ़ जाने से ये निरोग शरीर को भी रोगी बनाने का साहस करने लगते हैं।

यज्ञ में रोग निरोधक शक्ति है। उससे प्रभावित शरीरों पर सहज ही में रोगों के आक्रमण नहीं होते हैं। यज्ञाग्नि में जो जड़ी-बूटी, शाकल्य आदि होम किए जाते हैं वे अदृश्य तो हो जाते हैं पर नष्ट नहीं होते। सूक्ष्म बनकर वे वायु में मिल जाते हैं और व्यापक क्षेत्र में पैलकर रोगकारक कीटाणुओं को खत्म करने लगते हैं। यज्ञ धूम्र की इस शक्ति को प्राचीन काल में भली प्रकार परखा गया था। इसका उल्लेख शास्त्रों में स्थान-स्थान पर उपलब्ध है। जैसे- यजुर्वेद में कहा गया है अग्नि में प्रक्षिप्त जो रोगनाशक, पुष्टि प्रदायक और जलादि संशोधक हवन सामग्री है, वह भस्म होकर वायु द्वारा बहुत दूर तक पहुँचती है और वहाँ पहुँचकर रोगादिजनक घटकों को नष्ट कर देती है। इसी तरह अथर्ववेद में कहा गया है- “अग्नि में डाली हुई हवि रोग कृमियों को उसी प्रकार दूर बहा ले जाती है, जिस प्रकार नदी पानी के झागों को बहा ले जाती है। यह गुप्त से गुप्त स्थानों में छिपे हुए घातक रोगकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देती है।
यज्ञाग्नि से बची हुई भस्म का भी औषधियों की तरह प्रयोग किया जाता है। इसी तरह के प्रयोग-परीक्षण चिली, पोलैण्ड तथा पश्चिम जर्मनी में भी चल रहे हैं। इन प्रयोगों में न केवल अनेक वनौषधियाँ प्रयुक्त होती हैं, वरन् अनेक स्तर की समिधाओं का भी एक दूसरे से भिन्न प्रकार का प्रतिफल पाया गया है। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि जिन क्षेत्रों में इस प्रकार के यज्ञ आयोजन हुए हैं, वहाँ अपराधों की संख्या कम हुई है। मानसिक तनाव एवं पारस्परिक द्वेष कम हुए हैं, यज्ञ वातावरण की प्रत्यक्ष उप्लाव्धिया देखी गई हैं। जिन परिवारों में अग्निहोत्र का प्रचलन हुआ है, उनमें बीमारी के प्रकोप में कमी हुई है।

gaureesh yagya

सोलह संस्कारों मे यज्ञ

शास्त्रकारों ने ऐसे ४० मोड़ों को तलाशा उनमें से १६ को प्रमुख मानकर षोडश संस्कारों का प्रचलन किया। जिस तरह उपवन के पौधों और जंगली पेड़ों में एक मूलभूत अंतर होता है। उद्यान के वृक्ष स्वस्थ सुडौल और अधिक फल देते हैं, जबकि जंगली पेड़ों की डालें, तने सब अनगढ़ और अव्यवस्थित होते हैं। यह अंतर देखभाल करने वाले माली के पुरुषार्थ का प्रतिफल होता है। वह न केवल समय पर खाद–पानी देता है, अपितु काट–छाँट भी करता रहता है। संस्कार परम्परा भी व्यक्तित्व को निखारने की ऐसी ही स्वस्थ कला है। जो चिन्ह-पूजा के रूप में चल तो आज भी रही हैं, पर उनसे जुड़े लोकशिक्षण ने अब मात्र कर्मकाण्ड या खाने-पीने और मौज मनाने वाले कार्यक्रमों का रूप धारण कर लिया है। अतएव कुछ प्रतिफल नहीं निकल पाता है, ऐसी धारणा बनती जा रही है। पाँच माह की अवस्था में भू्रण का मस्तिस्क भाग बनना प्रारंभ होता है। यह एक तरह का शरीर का राज्याभिषेक पर्व है। पाँच माह में पुंसवन मनाने की परम्परा इसीलिए पड़ी। बीज को संस्कारित कर देने से पौधे स्वस्थ होते हैं यही इनका उद्देश्य है। हिन्दू संस्कार के अनुसार गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, कर्णभेद व विद्यारम्भ, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह, अन्त्योष्ट और श्रद्धा यह सभी एक से एक बढ़कर महत्व आत्मसात किए हुए हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सभी संस्कार उस आयु और अवस्था में सम्पन्न होते हैं जब उस तरह के विशेष मार्गदर्शन प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए बच्चे के शरीर का “हारमौनिक विकास ८ से १३ वर्ष की आयु में होता है। यह आयु जीवन का सबसे नाजुक मोड़ होती है। इसी आयु में अधिकांश बच्चे बिगड़ते हैं अतएव इसी आयु में यज्ञोपवीत या वृत-बंध रखा गया।” ब्रह्मचर्य आश्रम में इन सब बातों का विचार है। हमें क्या खाना चाहिए, क्या सुनना चाहिए, क्या देखना चाहिए, क्या पढ़ना चाहिए, वैसे बैठना चाहिए, कब उठना चाहिए आदि सब बातों का विवेकपूर्ण निश्चय करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का भी एक शास्त्र है। ब्रह्मचारी बननेवालों को उस शास्त्र के अनुसार आचरण करना चाहिए। इसीलिए गाँधीजी हमेशा कहते थे कि ब्रह्मचर्य किसी एक इन्द्रय का संयम नहीं है। ब्रह्मचर्य जीवन का संयम है। ब्रह्मचर्य का पालन उसी समय संभव है जबकि कान, आँख, जबान आदि सभी इन्द्रयों का संयम किया जाय।

ब्रह्मचर्य पालन करने की बात आजकल बहुत कठिन हो गई है। चारों ओर का वातावरण बड़ा दूषित हो गया है। सबके मन मानो खोखले हो गए हैं। सब जगह ढीलढाल और पोलपाल आ गई है। ब्रह्मचर्य आश्रम में मानो पुनर्जन्म है। अब संयमी होना चाहिए। ध्येय की उपासना करनी चाहिए। अग्नि में समिधा होम देने के बाद ब्रह्मचारी को जो प्रार्थना बोलनी चाहिए वह है- हे अग्नि मुझे बुद्धि, विचारशक्ति और तेज दे। इन्द्र मुझे बुद्धि, विचारशक्ति और सामथ्र्य दे। सूर्य मुझे बुद्धि, विचारशक्ति और तेज दे। हे अग्नि ! मुझे अपने तेज से तेजस्वा होने दे। अपने विजयी तेज स मुझे महान बनने दे। मलिनता को भस्म कर देने वाले अपने तेज से मुझे भी माल्नता का भस्म करने वाला बनने दे। मेखला और कौपीन धारण करके बटु हाथ में दण्ड लेता है। उस समय वह कहता है|मुझे असंयमी को यह दण्ड संयम सिखाए। हे दण्ड! जब कहीं मुझे डर लगे तब तू उससे मेरा उद्धार कर। उपनयन के अंत में जो मेधासूक्त बोलते हैं, संयमी ज्ञानवान गुरु इसे उन्नति की ओर ले जाए। यह तरुण अध्ययन करके, मन को एकाग्र करके देवताओं का प्यारा बने, तेजस्वी बने।
हम यज्ञोपवीत पहनते हैं। उसका पहले अर्थ कुछ भी रहा हो। मुझे तो उसके तीन धागों में एक बहुत बड़ा अर्थ दिखाई दिया। कर्म, भक्ति और ज्ञान के तीन धागे ही मानो यह जनेऊ है। इन तीनों को एकत्र करके लगाई हुई गाँठ ही ब्रह्मगाँठ है। जब हम कर्म, ज्ञान और भक्ति को एक दूसरे के साथ जोड़ेंगे, तभी ब्रह्म की गाँठ लग सकेगी। केवल कर्म से, केवल ज्ञान से, केवल भक्ति से ब्रह्मगाँठ नहीं लग सकेगी। पूल की पँखुड़ी, उसके रंग और उसके गंध में जिस प्रकार का एक ही भाव है, और जिस प्रकार दूध, शक्कर और केशर को हम एक कर लेते हैं उसी प्रकार कर्म, ज्ञान और भक्ति को भी एक बना लेना चाहिए। बीज तुच्छ है किन्तु वह जिस पेड़ का अंश है उसी स्तर तक विकसित होने की संभावनाएँ उसमें पूरी तरह विद्यमान हैं। बीज को अवसर मिले तो वह अपनी मूलसत्ता वृक्ष के समान फिर विकसित हो सकता है। जीवात्मा की प्रखरता बढ़ता रहे तो उसकी विकास प्रक्रिया उसे महात्मा-देवात्मा एवं परमात्मा बनन की स्थति तक पहुँचा सकती है। इन सब पर्वों, उत्सवों, संस्कारों एवं अन्य सामूहिक आयोजनों में यज्ञ का कार्यक्रम निश्चत रूप से जुड़ा रहता था, जिसका उल्लेख शास्त्रों में विभिन्न स्थानों पर किया गया है। यज्ञ के ज्ञान एवं विज्ञान के सिद्धांत की अवधारणा से ही स्वर्णिम परिस्थतियों का सृजन संभव हो सका था। जन्म के बाद जात कर्म, नामकरण, अन्नप्रशासन, मुण्डन, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत आदि कई संस्कार हैं जो बचपन की आयु में जल्दी-जल्दी सम्पन्न किए जाते रहते हैं। इन सब में यज्ञ अनिवार्य है। इससे बालक को और उसके निरन्तर सम्पर्व में आने वाले मातापिता व रिश्तेदारों को साम्मलित होना पड़ता है। इससे शारीरिक एवं मानसिक विकृतियों के उत्पन्न होने की आशंका का पूर्व निराकरण हो जाता है। यज्ञ के द्वारा मनुष्य की आत्माग्न प्रदीप्त होती है। आत्मााQग्न के प्रदीप्त होने से परमात्मा प्रसन्न होते हैं और वह प्रसन्न होकर यज्ञकर्ता के समस्त मनोरथों को पूर्ण करते हैं (२/१४ शुक्ल यजुर्वेद) यज्ञ की अग्नि हविद्र्रव्य प्रदान करनेवाले को अत्यंत यशस्वी, ज्ञानी, विजयी और श्रेष्ठ वाग्मी (वक्ता) बनाती है और सर्वगुणसम्पन्न पुत्र प्रदान करती है (५/२५/५ ऋग्वेद)
ब्रह्मचारी बनने वालों को उस शास्त्र के अनुसार आचरण करना चाहिए। इसीलिए गाँधीजी हमेशा कहते थे कि ब्रह्मचर्य किसी एक इन्द्रिय का संयम नहीं है। ब्रह्मचर्य जीवन का संयम है। ब्रह्मचर्य का पालन उसी समय संभव है जबकि कान, आँख, जबान आदि सभी इन्द्रिय का संयम किया जाय। ब्रह्मचर्य पालन करने की बात आजकल बहुत कठिन हो गई है। चारों ओर का वातावरण बड़ा दूषित हो गया है। सबके मन मानो खोखले हो गए हैं। सब जगह ढीलढाल और पोलपाल आ गई है। ब्रह्मचर्य आश्रम में मानो पुनर्जन्म है। अब संयमी होना चाहिए। ध्येय की उपासना करनी चाहिए।
अग्नि में समिधा होम देने के बाद ब्रह्मचारी को जो प्रार्थना बोलनी चाहिए वह है- हे अग्नि मुझे बुद्धि, विचारशक्ति और तेज दे। इन्द्र मुझे बुद्धि,विचारशक्ति और सामथ्र्य दे। सूर्य मुझे बुद्धि, विचारशक्ति और तेज दे। हे अग्नि! मुझे अपने तेज से तेजस्वी होने दे। अपने विजयी तेज से मुझे महान बनने दे। मलिनता को भस्म कर देने वाले अपने तेज से मुझे भी मलिनता को भस्म करने वाला बनने दे। मेखला और कौपीन धारण करके बटु हाथ में दण्ड लेता है। उस समय वह कहता है- मुझे असंयमी को यह दण्ड संयम सिखाए। हे दण्ड! जब कहीं मुझे डर लगे तब तू उससे मेरा उद्धार कर। उपनयन के अंत में जो मेधासूक्त बोलते हैं, संयमी ज्ञानवान गुरु इसे उन्नति की ओर लेजाए। यह तरुण अध्ययन करके, मन को एकाग्र करके देवताओं का प्यारा बने, तेजस्वी बने