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धूप एवम सुगंध चिकित्सा

ऋग्वैदिक काल में प्रतिदिन संध्याकाल (प्रात:–सायं) में धूप यज्ञ किया जाता था। यह धारणा तभी से आज तक बनी हुई है कि धूप यज्ञ से उठने वाला धुआँ वातावरण को रोगाणुरहित और शुद्ध बनाता है। २००० ई. पू. के समय के वैदिक साहित्य में दालचीनी, अदरक, मूर, चंदन, लौंग जैसे ७०० से भी अधिक तत्वों का वर्णन किया गया है। प्रमाण सिद्ध करते हैं कि भारतवर्ष में उस समय के लोग जड़ी-बूटियों के सुवासित पदार्थों का प्रयोग करते थे।

विभिन्न देशों में अनेक बहुदेशीय कंपनी अपने कर्मचारियों की क्षमताओं में इजाफा करने के लिए चंदन, चमेली आदि की खुशबुओं का प्रयोग अपने कार्यालय व कारखानों में कराती हैं। ऐसा होने से कर्मचारी मानसिक उद्वेग या तनाव का शिकार नहीं होते और आपसी तालमेल बैठाकर अच्छा कार्य करते हैं। उनकी कार्यक्षमता का विकास होता है।

सुगन्ध से मस्तिस्क के ज्ञान तन्तु में एक प्रकार की गति उत्पन्न होती है। इससे मन हृदय पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। परिणामत: रक्त संचार में तेजी आ जाती है, ऑक्सीजन ज्यादा मिलती है इसीलिए इसका प्रयोग जीव में एक प्रकार का आनन्द उल्लास पैदा करता है।

सुगन्ध की अनुकूलता, प्रियता सभी पसंद करते हैं। इसके विपरीत दुर्गन्ध एवं प्रदूषण के परिणामों से सभी परिचित हैं। यही कारण है कि कमरों को सुगन्धित करने के लिए अगरबत्तियाँ, धूपबत्तियाँ, लोबान, धूप आदि जलाए जाते हैं।

वनौषधि यजन प्रक्रिया धूम्रों को व्यापक बनाकर, सुगंध पैलाकर समूह चिकित्सा की विद्या है, जो पूर्णत: विज्ञान सम्मत है। गंध प्रभाव के माध्यम से मस्तिस्क के प्रसुप्त केन्द्रों का उद्दीपन, अन्दर के हारमोन रस द्रव्यों का रक्त में आ मिलना तथा श्वास द्वारा प्रमुख कार्यकारी औषध घटकों का उन ऊतकों तक पहुँच पाना, ये ही जीवनी-शक्ति निर्धारण अथवा व्याधि निवारण हेतु उत्तरदायी है।

सम्पर्क में आने वालों की शारीरिक-मानसिक व्याधियों का भी निराकरण हो सके, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही विषय निर्धारित किए जाते हैं। यज्ञ सामग्री में रहने वालों पदार्थों का चयन करते समय उनकी सूक्ष्म-शक्ति के अतिरिक्त यह भी देखा जाता है कि उस सामग्री में उपयोगी सुगंधित पदार्थ का तत्व है या नहीं। यह सुगंधित तत्व भी यजनकर्ताओं के शरीर में प्रवेश करते हैं और उन्हें आरोग्य प्रदान करते हैं।

भारत में अति प्राचीन काल से विभिन्न देवी-देवताओं की आरती करने का विधान है। आरती के समय गाय के घी का दिया एवम कपूर भी जलाया जाता है तथा धूप की विभिन्न भक्तजनों को आरती दी जाती है। इन सबके पीछे मात्र यह उद्देश्य था कि किसी भी स्थान विशेष पर कुछ समय तक कपूर का दहन हो तथा साधक का परिवार लाभाान्वत हो। दरअसल कपूर के दहन से उत्पन्न वाष्प में वातावरण को शुद्ध करने की जबरदस्त क्षमता होती है। इसकी वाष्प में जीवाणुओं, विषाणुओं तथा अतिसूक्ष्म से सूक्ष्मतर जीवों का शमन करने की शक्ति होती है। इन सूक्ष्म जीवों को प्राचीन ग्रंथों में ही भूत, पिशाच, राक्षस आदि की संज्ञा दी गई है। अत: कपूर वा अन्य अनेक वनस्पतियां को घर में नित्य जलाना परम हितकर है। इसको नित्य जलाने से ऋणावेशित आयन्स घर में बढ़ते हैं परिणामस्वरूप घर का वातावरण शुद्ध रहता है, बीमारियाँ उस घर में आसानी से आक्रमण नहीं करती हैं। दु:स्वप्न नहीं आते। देवदोष एवं पितृदोषों का नाश होता है।

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पूजा पाठ, धूप हवन सामग्री , इत्र, एसेंशियल ऑयल,फ्लोरल वॉटर द्वारा सुगंध चिकित्सा।

सुगंध चिकित्सा अनुसार सुगंध के इस्तेमाल से आंख कान नाक मस्तिष्क हृदय और पाचन क्रिया के अवयव पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है सुगंध से मस्तिष्क के ज्ञान तंतु में एक प्रकार की गति उत्पन्न होती है इससे मन हृदय पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है परिणाम तो रक्त संचार में तेजी आ जाती है ऑक्सीजन ज्यादा मिलती है इसलिए इसका प्रयोग जीवन में आनंद उल्लास पैदा करता है वन औषधि यजन प्रक्रिया मैं धूएं को व्यापक बनाकर सुगंध फैलाकर समूह चिकित्सा की एक विधा है जो विज्ञान सम्मत है गंध के प्रभाव के माध्यम से मस्तिष्क के प्रसुप्त केंद्रों का उद्दीपन ओर अंदर के हार्मोन रस द्रव्यों का रक्त में आ मिलना तथा स्वास द्वारा प्रमुख कार्यकारी औषधीय घटकों का उनको तक पहुंचना यही जीवन शक्ति निर्धारण अथवा व्याधि निवारण हेतु उत्तरदाई है
यह पदार्थ मनुष्य के शरीर और मन दोनों पर प्रभाव डालते हैं तथा भावनाओं को विशेष उल्लासित करते हैं सुगंध से वातावरण में अच्छे आयनों की संख्या में वृद्धि होती है हमारे देश में आदि काल से ही पूजा में सुगंधित पदार्थों का भगवान को समर्पण में उपयोग किया जाता रहा है इसी तरह धूप यज्ञ में अनेक सुगंधित जड़ी बूटियां डाली जाती हैं ज्योतिष में भी ग्रह राशियों के हिसाब से अलग-अलग सुगंधो का प्रभाव है सुगंध तरोताजा रखती है लव रोमांस में सुगंध का अपना महत्व है जो माहौल को खुशनुमा बनाता है
क्या आप जानते हैं कि
हिंदू धर्म व ज्योतिष शास्त्र में सुगंध व खुशबू का बहुत महत्व माना गया है साथ ही देवी लक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है।
ओम त्र्यंबकम यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव वंदना मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।

सुगंध इत्र से देवी देवता को प्रसन्न होते है

सुगंध से ऐसे हार्मोंस रस उत्पन्न होते हैं जो हमें रिलैक्स करते हैं और हम खुश रहते हैं

सुगंध के चमत्कार से प्राचीनकाल के लोग परिचि‍त थे तभी तो वे घर और मंदिर आदि जगहों पर सुगंध का विस्तार करते थे। धूप यज्ञ करने से भी सुगंधित वातावरण निर्मित होता है।सुगंध के सही प्रयोग से एकाग्रता बढ़ाई जा सकती है। सुगंध से स्नायु तंत्र और डिप्रेशन जैसी बीमारियों को दूर किया जा सकता है। जानिए सुगंध का सही प्रयोग कैसे करें और साथ ही जानिए सुगंध का जीवन में महत्व। मनुष्य का मन चलता है शरीर के चक्रों से। इन चक्रों पर रंग, सुगंध और शब्द (मंत्र) का गहरा असर होता है।
यदि मन की अलग-अलग अवस्थाओं के हिसाब से सुगंध का प्रयोग किया जाए तो तमाम मानसिक समस्याओं को दूर किया जा सकता है।

ध्यान रहे कि परंपरागत सुगंध को छोड़कर अन्य किसी रासायनिक तरीके से विकसित हुई सुगंध आपकी सेहत और घर के वातावरण को नुकसान पहुंचा सकती है।इत्र की खुशबू परलौकिक शक्तियों ,देवी और देवताओं को भी आर्कषित कर सकता हैं।
आइये जानते है इत्र से जुड़े कुछ फायदे-
यदि आप अपने कार्यालय या ऑफिस में लोगों पर प्रभाव डालना चाहते हैं तो मोगरा, रातरानी और चंदन का इत्र प्रयोग करें । ऑफिस में आपसे सब खुश रहेंगे।
मंदिर में चंदन, कपूर, चंपा, गुलाब, केवड़ा, केसर और चमेंली को इत्र भेंट करने या लगाने से देवी और देवता प्रसंन होते हैं।
खुशबू/इत्र द्वारा
जानिए कैसे करें नवग्रहों को सुगंध से प्रसन्न करें, हर ग्रह को है कोई खास सुगंध पसंद…है
यदि आपको लगता है कि कोई ग्रह या नक्षत्र आपकी जिंदगी में परेशानी खड़ी कर रहा है तो आप सुगंध से इन ग्रह नक्षत्रों के बुरे प्रभाव को दूर कर सकते हैं। तो जानिए कि कैसे सुगंध से ग्रहों की शांति की जा सकती है। यदि आपकी कुंडली में सूर्य ग्रह बुरे प्रभाव दे रहा है तो आप केसर या गुलाब की सुगंध का उपयोग करें। चंद्रमा मन का कारण है अत: इसके लिए चमेली और रातरानी के इत्र का उपयोग कर सकते हैं। मंगल ग्रह की परेशान से मुक्त होने के लिए लाल चंदन का इत्र, तेल अथवा सुगंध का उपयोग कर सकते हैं। बुध ग्रह की शांति के लिए चंपा का इत्र तथा तेल का प्रयोग उत्तम है गुरु के लिए केसर और केवड़े का इत्र के उपयोग के अलावा पीले फूलों की सुगंध से गुरु की कृपा पाई जा सकती है। शुक्र ग्रह की शुभता के लिए सफेद फूल, चंदन और कपूर की सुगंध लाभकारी होती है। शनि के खराब प्रभाव को अच्छे प्रभाव में बदलने के लिए कस्तुरी, लोबान तथा सौंफ की सुगंध का उपयोग करे कस्तुरी के इत्र का उपयोग कर राहु ग्रह के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। केतु के लिए घर में प्रतिदिन औषधीय धूप गुड़ और घी को मिलाकर उसे कंडे पर जलाएं।
रोजगार में वृद्धि हेतु :दीपावली पर महालक्ष्मीजी की पूजा के समय मां को एक इत्र की शीशी चढ़ाएं। उसमें से एक फुलेल लेकर मां को अर्पित करें। फिर पूजा के पश्चात् उसी शीशी में से थोड़ा इत्र स्वयं को लगा लें। इसके बाद रोजाना इसी इत्र में से थोड़ा-सा लगा कर कार्य स्थल पर जाएं तो रोजगार में वृद्धि होने लगती है।
रोज़ाना घर से निकलने वक्त अपनी नाभि में चंदन, गुलाब व मोगरे का इत्र लगाएं, इससे संपन्नता और वैभव बढ़ता जाएगा।
यदि आप चाहते है कि आपका पर्स हमेशा नोटो से भरा रहे तो पर्स में दो नोटों पर चंदन का इत्र लगाकर रखें। चंदन का इत्र लगाकर रखने से आपका पर्श हमेशा पैसों से भरा रहेगा अगर पति और पत्नी अपने बीच प्रेम के साथ ही घर में धन व समृद्धि को बढ़ाना चाहते है तो शुक्ल पक्ष की शुक्रवार को माता लक्ष्मी को श्रृंगार के सामान के साथ इत्र भेट करें।
तिज़ोरी में चंदन का उपयोग कर सकते हैं। किसी भी देव-स्थल पर लाल गुलाब व चमेली का इत्र चढ़ाने से प्रेम विवाह में आ रही बाधाएं दूर होंगी।अगर आपको अचानक से नुकसान हो रहा है तो सात शुक्रवार को अपने पत्नी के माध्यम से सुहागिनों को लाल वस्तु उपहार दें। इसके साथ ही उपहार में इत्र जरूर दें। इससे तुरंत लाभ होगा।

देवताओं को प्रसंन्न करने हेतु: मंदिर में चंदन, कपूर, चंपा, गुलाब, केवड़ा, केसर और चमेली के इत्र का इस्तेमाल करने से देवी और देवता आपसे प्रसन्न रहते हैं।

gaureesh yagya

पूजन सामग्री पर चर्चा क्यों जरूरी है क्योंकि यह आपके स्वास्थ्य से संबंधित है आज सभी लोगों को जानकारी होना चाहिए

यह स्वास्थ एवम पर्यावरण से संबंधित होने से अत्यंत आवश्यक है
हमें विचार करना चाहिए और अपने आप से सवाल पूछना चाहिए जिससे हमारी जीवन जीने की पद्धति सनातन सभ्यता
संस्कृति
परंपरा में सुधार हो वैज्ञानिकता दिखे।

पूजा पाठ की बात होते ही प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक पवित्रता
शुद्धता सफाई सकारात्मकता
समर्पण आस्था का भाव उत्पन्न होता है भगवान के प्रति श्रेष्ठ समर्पण और प्रकृति के प्रति क्रताघनता का भाव उत्पन्न होता है । पर आज नई पीढ़ी के मन में अनेक प्रश्न उत्पन्न होते रहते है
वे प्रत्यक्ष रूप से सब तरफ गंदगी कचरा केमिकल अव्यवस्था प्रदुषण महसूस कर रहे है साथ ही घबरा कर परेशान होकर उनके
मन मस्तिष्क में सवाल उठता है, कि हम पूजा पाठ करके क्या प्राप्त करेंगे
क्यों हमें करना चाहिए क्या हम पूजा पाठ करके रिलैक्स होंगे ? इसके उत्तर में आज अनेकों प्रकार की अव्यवस्थाओं को देखकर गंदगी अशुद्धता पाकर वह विचलित हो रहे हैं।

हमने पूजन सामग्री पर रिसर्च किया अनेक व्यक्तियों से बात की पंडितों से जानकारी ली अनेक शहरों में बाजार दुकानदार से बातचीत की
पूजन सामग्री के बारे में यह जानने की कोशिश की कि यह कहां पैदा होती है इसमें कौन ट्रेडर हैं थोक व्यापारीयो से दुकानदारों तक कैसे पहुंचती है और अन्तिम उपयोगकर्ता यजमान तक पहुंच कर कैसे उपयोग होती है। हमारे मन में अनेक प्रश्न सवाल जवाब उठे उनमें से कुछ पर चर्चा करेंगे।

सबसे पहले पहले हमने पाया की पूजन सामग्रियों का उपयोग हर धर्म का व्यक्ति किसी न किसी रूप में करता है या वह कभी ना कभी उसके संपर्क में आता ही है।
दूसरा अत्यंत महत्वपूर्ण बात जो सामने आई वह इस सामग्रियों की उपयोगिता से संबंधित है
अच्छी सामग्रियों के द्वारा अच्छा वातावरण पर्यावरण मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सभी को प्राप्त होता है

मतलब पूजा पाठ फलदाई होती है।
हमें मार्केट सर्वे करने पर बाजार से अनेक जानकारियां प्राप्त हुई जिसे जजमान और पंडित जी दोनों को जानना आवश्यक है
इस पूजा-पाठ की सामग्री के व्यापार में अधिकतर बनवासी ग्रामवासी व्यक्ति जो हिंदू हैं वह जंगल से लाते हैं या अपने खेत में ऊगाते हैं या गांव के आसपास से प्राप्त कर इकट्ठा कर बाजार में बेचते हैं।
अब इसके आगे इस व्यापार में अधिकतम व्यवसाई जो 80% हैं मुस्लिम एवं बोहरा समाज के हैं जो ट्रेडर और मैन्युफैक्चरर्स हैं 10% सिंधी व्यापारी हैं बाकी 10% में अन्य सभी लोग हैं।
इसमें रिटेलर एवं उपयोगकर्ता अधिकतर हिंदू हैं।
अधिकतम पूजन सामाग्रीयो के नाम हिन्दू है क्यों कि अधिक खरीददार हिंदू ही है ।

मुखायतः

सभी धर्मों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण यह है की सामग्रियां असली शुद्ध एवं साफ-सुथरी होना तभी तो वे असरकारक होंगी जबकि ऐसा नहीं था फैक्ट्रियां जो यह सामान का उत्पादन पैकिंग करती हैं वहां पर वर्कर के रूप में महिलाएं अधिक काम करती हुई मिली जो स्वयं ही साफ-सुथरी नहीं थी महावारी मैं भी वह कार्य कर रही थी मटेरियल केमिकल और कूड़ा करकट युक्त था असली क्या है यह खोज का विषय था। सिर्फ पैकिंग ही अट्रैक्टिव और सुंदर थी।
उनके नाम भगवान के नाम पर थे।
हमने विचार किया की क्या हमारा समाज सो रहा है पंडित जी क्यों चुप हैं वह बोलते नहीं आस्था के नाम पर इतनी मिलावट गिरावट आ गई है वह भी भगवान के नाम पर हम कहां से कहां आ गए यह प्रोग्रेस है या पतन।

बाजार में अधिकतर दुकानदारों के यहां लिखा पाया कि यह सामान सिर्फ पूजा के उपयोग के लिए है अन्य उपयोग में ना लाएं नॉट ईडेबल ऐसी सामग्रियों के समर्पण से ना तो देव प्रसन्न होंगे ना ही हमें कुछ मिलेगा इन सामग्रियों के उपयोग का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा अध्यात्म पूजा पाठ का संबंध मन आत्मा पर होता है क्योंकि यह एकाग्रता ध्यान मेडिटेशन का माध्यम है।
अनेक दुकानदारों ने यह भी जवाब दिया कि हमें धर्म और आस्था से कोई लेना देना नहीं है जो है वह आपके सामने हैं लेना हो तो लो वरना छोड़ जाओ।

हमारे पूर्वज बचपन में यह सिखाते थे कि गलत करने पर पाप लगेगा कहीं गलत का संबंध स्वास्थ्य के नुकसान से तो नहीं है ।

ऐसी गलत सामग्रियां अगर कोई भी उपयोग करेगा तो बीमारियां उसके घर में होंगी जिसका कारण ना आपको मालूम पड़ेगा ना ही आपके डॉक्टर को
और पंडित जी ऐसे सामान के प्रयोग से बीमार पढ़ेंगे क्योंकि वह दिन में दो बार किसी न किसी जगह पूजन करवाने जाते हैं। यह क्या हो रहा है वह भी भगवान के नाम पर सभी जगह नकली कचरा युक्त केमिकल युक्त सामग्रियां मिल रही हैं अधितर दुकानों पर तेल निकली जड़ी बूटियां मिली जो वेस्ट मटेरियल था मतलब फेंकने वाला , ऐसी सामग्रियो से क्या प्राप्त होगा दुकानदार से खरीददार तक सभी लोग बीमारियों से बेखबर हैं धर्म के नाम पर ही अधर्म हो रहा है।
आज पूरे विश्व में पर्यावरण की स्थिति हमारे देश की चिंता जनक है विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रदूषण के नाम पर इमरजेंसी घोषित कर चुका है। हमारे देश में प्रदूषण बढ़ रहा है वनस्पतियां कम हो रही है साथ ही गलत सामग्रियों के उपयोग से हम घर के अंदर भी प्रदूषण फैला रहे हैं पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ मानसिक प्रदूषण भी फैल रहा है। इसलिए
हवन – पूजन सामग्री में सावधानी जरुरी है।

हवन और यज्ञ का महत्व सभी जानते हैं l आध्यात्मिक, घर – परिवार, धन, सुख व स्वास्थ्य लाभ के लिए जप व हवन आदि करते रहते हैं।
हवन के बाद साँस में तकलीफ, आंख में तकलीफ और त्वचा रोग भी हो रहे हैं। ऐसा बाज़ार में बिक रही नकली हवन और पूजन सामग्री के कारण भी हो रहा है। हवन में कई सामग्रियां स्वयं हवनकर्ता को जुटानी पड़ती हैं। पहले लोग हवन सामग्री जंगल, बाग़ – बगीचों व अपने गाँव से ही एकत्र करते थे पर अब इस शहरी युग में हर चीज़ मिलने का एक स्थान बाज़ार ही है।
बाजार में मिलने वाले अधिकांश हवन सामग्री पैकेटों में लकड़ी का बुरादा, झाड़ू का बुरादा, कागज और कूड़ा – करकट की मात्रा अधिक मिलेगी। साथ ही गाजर घास के अंश जो सब जगह आसानी से मिल जाती है और टीबी ,दमा खांसी,नेत्र रोगों, एलर्जी, को जन्म देती है। ऐसी हवन सामग्री से हवन कर क्या लाभ होगा। आपकी श्रद्धा से जब आप कुड़े से हवन करेंगे और देवता कूड़ा ग्रहण करेंगे तो प्रतिफल क्या होगा आप खुद समझ सकते हैं। ऐसे में लोग भारतीय पूजा पद्धति मंत्र, तंत्र, यंत्र ,ज्योतिष सब पर प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं। इसी तरह अच्छा घी 800 रुपए किलो से उपर बिक रहा है वहीँ बाजार में हवन के लिए घी चाहिए तुरंत दुकानदार 150₹- 200 रुपए किलो का पेकेट दिखा देगा। उसपर कहीं न कहीं लिखा मिल जायेगा की “नोट फॉर इंटरनल यूज़ या ह्यूमन यूज़ या नॉन एडिबल।” क्योंकि उनमे पेट्रोलियम जेली और पशुओं की चर्बी होती है घी की बस खुशबु होती है। अब ऐसे घी से हवन कर आप क्या लाभ लेंगे? हवन का एक बेहद महत्वपूर्ण अंग है गुग्गुल। शुद्ध गुग्गुल क्वालिटी अनुसार 3500 रूपये प्रति किलो तक मिलता है वहीं आज अधिकतर पंसारियों के पास 700 से 1000 रूपये किलो में मिल रहा है। मुनाफाखोर बड़ी मात्रा में नकली गूगल तैयार करवाते हैं। इसके लिए विदेशों से मिलने वाले रेजिन नामक केमिकल रसायन का उपयोग किया जाता है। इस केमिकल में समुद्र की गरम रेत, रंग और खुशबू मिलाते हैं। इसे मशीन से टुकड़ों में तोड़ा जाता है। जब हवनकुंड में इसे डाला जाता है तो केमिकल चूंकि ज्वलनशील होता है तो वो जल जाता है और रेत व अन्य चीजें बाकी सामग्रियों के साथ मिल जाती हैं। यही वजह है कि हवन के दौरान गुग्गुल की जो ह्रदय तृप्त करने वाली विशेष सुगंध वाला धुआं आना चाहिए, वैसा नहीं आता, बल्कि इससे छींक, सिर चकराना, चक्कर आना जैसी शिकायतें हो जाती हैं।
अगर बत्ती और धुप बत्ती का मुद्दा तो पुराना हो गया है। अगरबत्ती में जहाँ खुशबूदार बुरादा बांस की डंडी में चिपका होता है वहीँ धूप बत्ती में मोबिल आयल का कचरा, नकली तेलों के ड्रमों के पेंदे में जमा गंदगी और खुशबु दर बुरादा रहता है। ऐसी चीजों की खुशबु से देवता प्रसन्न नहीं होंगे।इसके अलावा धार यानि सूखे फलों के चूर्ण के नाम पर सड़े सूखे फलों का चूर्ण मिलता है । अशुद्ध हवन सामग्री एवं अनुचित मात्रा सर्वथा त्याज्य है।
वहीँ अब रेडीमेड पैकेट आ रहे हैं ऐसी मान्यता है की ये मात्रा सही न होने पर यज्ञ करने वाला और यजमान दोनों ही गंभीर रोगों के शिकार बनते हैं। शहद में शीरा मिला होता है। चन्दन की लकड़ी और बुरादे के नाम पर नकली एसेंस डाल कर चन्दन के साथ भिगो कर लकड़ियाँ बिकती हैं । अब किसमे कितना और क्या होगा भगवान ही जाने? कपूर की आजकल टिक्की मिलती है वह आरती ख़तम दीपक शांत पर टिक्की सलामत बची रहती है। असली कपूर की पहचान ही यही थी कि खुला रखा हो तो हवा में उड़ जायेगा और जलेगा तो जलने के बाद कुछ शेष नहीं बचता था। वो कपूर लोग सर में लगाते थे , पेट ठीक ने होने पर एक चुटकी फांक लेते थे ,दांत दर्द में दांत के निचे दबाते थे। पर इस पैकेट वाले कपूर में लिखा होता है “नॉन एडिबल या नॉट फॉर इंटरनल यूज़। केसर की मिलावट के बारे में तो जितना कहें कम है। रोली भी सिंथेटिक आ रही है रंग मिली और सिंदूर भी। आज सुबह तिलक करो तो परसों तक माथे पे निशान बना रहे ऐसी। इतनी पक्की।कलावा भी कच्चे सूत की जगह सिंथेटिक धागे और पक्के सूत का आने लगा है। कमलगट्टा जैसी चीज़ भी अब नकली आने लगी है तो लक्ष्मी माता कहाँ से प्रसन्न हों।
जटामांसी भी नकली आती है उसके जैसी दिखने वाली अन्यथा किसी भी पौधे के चूर्ण में एसेंस डालकर जटामांसी चूर्ण के नाम पर बिकता है।तिल का तेल और हल्दी भी मिलावट युक्त आ रही है । अतः आपसे अनुरोध है की किसी भी प्रकार की पूजन और हवन सामग्री किसी भरोसे के स्थान से खरीदें या स्वयं एकत्र करें। ये महंगी अवश्य होगी पर इसके इस्तेमाल के बाद आपको इनका असर भी नज़र आयेगा। अन्यथा नकली कूड़ा करकट केमिकल एसेंस मिली पूजन हवं सामग्री के इस्तेमाल से न सिर्फ आपके धन का नुकसान होगा बल्कि आपकी श्रद्धा और विश्वास को चोट लगेगी।

gaureesh yagya

वैदिक साइंस पूजा सामाग्री धूप यज्ञ हवन सामग्री

वैज्ञानिक उत्तर
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जब हम यज्ञ करते हैं तब अग्नि के साथ मंत्रोच्चारण द्वारा हम दोनों प्रकार की एनर्जी एक साथ प्राप्त करते हैं इन दोनों के सहयोग से फिजिकल साइकोलॉजिकल और स्प्रिचुअल लाभ भी प्राप्त करते हैं यह बात विज्ञान सम्मत है कि हमारे पास दो प्रकार की बेसिक एनर्जी इस फिजिकल दुनिया में है हीट एंड साउंड अर्थात ताप और स्वर अब हम सामग्रियों पर बात करें तो इसमें विभिन्न प्रकार के घटक का समायोजन कॉन्बिनेशन होता है जो हमें विभिन्न प्रकार से लाभ देती हैं हम उन जड़ी बूटियों के अलग-अलग एंगल से अलग-अलग प्रकार से लाभ प्राप्त करते हैं जिसका वैदिक उत्तर हमें मिलता है वैज्ञानिक उत्तर आज के परिपेक्ष में उतना ही आवश्यक है

सबसे पहले हम इकोक्लीन वातावरण पर विचार करते हैं आधुनिक जीवन पर्यावरण और धूप यज्ञ हवन द्वारा ग्रीन एवं ऑर्गेनिक मैनेजमेंट

जब पशु बीमार होता है तब वह जंगल में ऐसी वनस्पतियों को खाता है ढूंढता है जो फाइटोकेमिकल युक्त होते हैं जिसमें एंटी वायरल एंटी बैक्टीरियल एंटी सेप्टिक एंटी एंटीबायोटिक एंटी-फंगल
तत्व होते हैं हवन में भी हाइड्रो कार्बन के आंशिक ऑक्सीकरण जटिल कार्बनिक पदार्थों के गठन से एल्डिहाइड का उत्पादन होता है जो शक्तिशाली एंटीसेप्टिक है फॉर्मल डिहाइड गैस के बनने से कीटाणु रहित वातावरण बनता है जिसे हॉस्पिटल में डिसइन्फेक्श के लिए प्रयोग किया जाता है वाशपशील तेलों एवं एरोमा तेलों कै जीवाणु नाशक धुएं के संपर्क में उत्पन्न उन गैसों द्वारा जीवाणु का नाश होता है मस्तिष्क कोशिका नवीनीकृत होती है ऑक्सीडेशन हाइड्रोकार्बन
इसी तरह फूड प्रिजर्वेशन मैं फार्मिक एसिड और एसिटिक एसिड दोनों से कीटाणु नाइस व संरक्षण मिलता है यज्ञ के धुए में यह प्रभाव है
यज्ञ में ऐसी जड़ी बूटियां होमी जाती हैं जो सीधे मस्तिष्क पर असर करती हैं न्यूरोलॉजिक सेशन रेगुलेशन पर काम करती हैं एवं एंटीबायोटिक गुणों से युक्त होती हैं सुगंध के लिए जड़ी बूटियों का मिश्रण तैलीय द्रव्य एलकेलाइट वोटाइल ऑयल की फ्यूम्स डिफ्यूज्ड नॉनबैक्टीरियल पैरासाइट किल करती है दूर भगाती है सैनिटाइज इन्वायरमेंट बनाती है
एथीनो फार्मोकोलॉजी जनरल में यह सब प्रकाशित हो चुका है क्या आप जानते हैं हवन यज्ञ की विधि अमेरिका में सन 2007 मैं ही पेटेंट हो चुकी है जिसका पेटेंट नंबर डब्लू ओ 2007 072 500 ए2 है
धूप यज्ञ हवन में दो बातें होती हैं आप नीचे क्या चला रहे हैं जो लकड़ियों के रूप में होता है जिसका कोयला नहीं बनता है जिसकी डायरेक्ट राख बनती है ऐसी 60 प्रकार की लकड़ियां जड़ी बूटियां होती हैं एवं देसी गाय के गोबर से बने उपले होते हैं आप ऊपर से अनेक वनस्पतियों का मिश्रण डालते हैं इस प्रकार धी की धारा चम्मच से डाली जाती है इसी प्रकार की जड़ी बूटियों के प्रयोग से विषाणु कीटाणुओं रोगाणुओं का नाश होता है हवा में तापमान 250 डिग्री से 700 डिग्री तक होता है इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन वायुमंडल में उपस्थित ऑक्सीजन से मिलकर भाप बनाती है कार्बन डाइऑक्साइड प्लस हाइड्रोजन डाइऑक्साइड प्लस
112000 कैलोरी बराबर एच सी एच ओ प्लस ऑक्सीजन
एनबीआर एवं अन्य शोधों से यह स्पष्ट है कि उक्त गैस अस्पतालों में संक्रमण को हटाने में प्रयोग होती हैं धुआं द्वारा 90% तक विषाणु कम होना पाए गए हैं यह वातावरण 15 से 20 दिनों तक वातावरण में रहता है हवन के वैपर एवं एरोमेटिक स्ट्रांग ऑक्सीडेंट का कार्य करते हैं हवन सामग्री की जड़ी बूटियां वेपर के माध्यम से नाक द्वारा सीधे फेफड़ों में जाती हैं एवं चमड़ी वा रोम के माध्यम से शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुंचती हैं एलोपैथी डॉक्टर द्वारा इनहेलेशन इसट्रांसल द्वारा सीधे ब्लड में दवाई पहुंचाई जाती है इंजेक्शन या टेबलेट से यह बेहतर होते हैं डॉक्टर द्वारा ट्रांसडर्मल पैच भी उपयोग किए जाते हैं इसी प्रकार से यज्ञ व पर भी सीधे हमारे ब्लड में शरीर में पहुंच जाते हैं यज्ञ हवन में एथिलीन ऑक्साइड पोपलीन ऑक्साइड विटा पॉपी लैकटॉन ऐसीटिलिन जैसी गैसों का निर्माण होता है यह लिपिड वेपर वातावरण में एवं हमारे शरीर में 2 माइक्रोन से भी छोटे पीपीएम को एब्जॉर्ब करके वायरस को निष्क्रिय कर देते हैं यज्ञ हवन के वैपर नाक के माध्यम से शरीर में जब प्रवेश करते हैं तब हमारी हाइपोथेलेमस ग्रंथि सक्रिय हो जाती है इसी तरह मनोरोग जैसे एडी डिप्रेशन उत्तेजना चिंता बेचैनी झुंझलाहट घबराहट वाले रोग एवं मिर्गी के दौरे वाले व्यक्ति जब इस हवन यज्ञ के संपर्क में आते हैं तो न्यूरो ट्रांसमीटर बढ़ जाते हैं गाबा सीरो निेन डोपामिन
जिससे हमें अच्छा लगता है हम खुश होते हैं व्यक्ति की डिप्रेशन एवं सुसाइडल टेंडेंसी कम हो जाती है टी सेल व्यक्ति की बीमारी से लड़ने में मदद करता है हवन में जो न्यूरो ट्रांसमीटर गाबा सिरोनिन बढ़ते हैं वह टी सेल को अनुशासित करने में मदद करते हैं सेंट्रल नर्वस सिस्टम को सीधे प्रभावित करते हैं सी डी ए डी
वातावरण में प्रदूषण के कारण कार्बन मोनो ऑक्साइड कार्बन डाइऑक्साइड नाइट्रोजन ऑक्साइड सल्फर ऑक्साइड ओजोन व अन्य हानिकारक घटकों पर असर होकर हानिकारक गैसै 80 प्रतिशत कम हो जाती हैं बैक्टीरिया कीटाणु माइक्रोेविअल भी 80 परसेंट कम हो जाते हैं अनहाइजीनिक जर्म समाप्त हो जाते हैं इसी प्रकार बायोटेक्नोलॉजी पेड़ पौधे जानवर पर भी असर होता है यह
वैदिक यज्ञ साइंस है।

Dr Rajendra Kumar Dubey

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प्रदूषण का समाधान है यज्ञ

आज प्रदूषण के बारे में बात कहाँ से शुरू की जाए और कहाँ समाप्त, इस प्रदूषण की कथा अनंत है। रसायन बनाने से लेकर उपयोग होने बाद तक खतरनाक होते हैं। रसायन उद्योग में लगने वाला कच्चा माल हो या तैयार माल सभी में खतरा रहता है। गैसों का प्रभाव किन्हीं परिस्थितियों में प्राणी पर उदासीन अथवा अनुवूल हो, किन्तु इनका प्रभाव प्रतिवूल अधिक होता है। गैसों का प्रतिवूल प्रभाव केवल मनुष्यों, पालतू और जंगली जानवरों, पौधों आदि पर ही नहीं पड़ता, बल्कि संपूर्ण परिस्थिति विज्ञान पर पड़ता है।

पश्चिम जर्मनी में १९४८ में जंगल सूखकर नष्ट होने लगे थे तब वहाँ तीन महीने तक लगातार यज्ञ कराने का यह चमत्कारिक प्रभाव हुआ कि उसी वर्ष में ही पतझड़ के मौसम के बाद हरियाली आनी प्रारम्भ हो गयी और कुछ ही वर्षों में जंगलों के सभी पेड़ पुनः हरे-भरे हो गये। यह सब नियमित हवन किए जाने का प्रभाव था। इस प्रयोग से वहाँ के वैज्ञानिक भी बहुत प्रभावित हुए। प्रदूषण को दूर करने वाला तो लगभग सम्पूर्ण वनस्पति जगत है, क्योंकि वनस्पतियाँ अपने अंत:–श्वसन में कार्बनडाइआक्साइड ग्रहण कर नि:श्वसन में ऑक्सीजन छोड़ती हैं। आजकल विश्व के समक्ष एक नयी समस्य उत्पन्न हो गयी है वह है ग्लोबल वार्मिंग जिससे समस्त विश्व आतंकित है। आज प्रदूषित वातावरण के कारण विश्व के १३० देशों के २५०० वैज्ञानिकों को चेतावनी देनी पड़ी की यदि पर्यावरण – शुद्धि पर अब भी तुरन्त पर्याप्त ध्यान न दिया गया, यदि पृथ्वी के बढ़ते हुए तापमान को रोकने के प्रभावी कदम न उठाए गये तो ग्लेशियर पिघल जाएंगे, गरम लहरें, अति वर्षा आदि से संसार के कई नगर समुद्र में डूब जाएँगे और धरती विनाश के कगार पर पहुँच जाएगी।

गाय के गोबर से लिपा हुआ स्थान आण्विक विकिरण के प्रभाव से पूर्ण सुरक्षित रहता है, गाय के घी को अग्नि में डालने पर उससे उत्सर्जित धुआँ आण्विक विकिरण के प्रभाव को काफी हद तक कम कर देता है। भारतीय भाषा में इस प्रक्रिया को “यज्ञ” कहा जाता है। चिली देश के एण्डीज पर्वत पर एक विशिष्ट यज्ञ शाला का निर्माण किया गया है जहाँ वैज्ञानिक विधि से यज्ञ करके अनेक लोगों ने अनेकों रोगों से मुक्ति पाई है। खेतों में नियमित रूप से हवन करने से वातावरण शुद्ध होता है तथा पौधे तेजी से बढ़ते हैं। पौधों के कीटाणुओं के नाश के लिए यज्ञ की राख बड़ी कारगर सिद्ध हुई। नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इन्सिटट्यूट, लखनऊ ने भी काफी परीक्षण एवं अनुसन्धान के बाद यह सिद्ध कर दिया कि हवन के प्रयोग से वायु का प्रदूषण बहुत अधिक मात्रा में खत्म हो जाता है। एक सामान्य व्यक्ति एक दिन में जितनी वायु ग्रहण करता है, यह मात्रा सारे दिन में ग्रहण किए गए अन्न और जल की मात्रा से ६ गुनी अधिक होती है। इससे स्पष्ट है कि मनुष्य के जीवन में खाद्य से भी अधिक महत्व वायु का है। वायु न मिले तो मनुष्य कुछ क्षण भी जीवित नहीं रह सकता, अन्न के अभाव में तो वह महीनों तक जीवित रह सकता है। यज्ञ का वैज्ञानिक आधार ही यह है कि अग्नि से अर्पित की गई वस्तुओं को कई गुना अधिक सूक्ष्म बनाकर वायु में पैला देती है। वायु का शोधन करने वाला यज्ञ मनुष्य का प्राणदाता है।

(१) शारीरिक थकान निवारण एवं सामथ्र्य बढ़ाने के लिए, (२) मानसिक बुद्धिबल बढ़ाने तथा भावनाओं में उत्कृष्टता लाने के लिए एवं (३) अदृश्य वातावरण एवं वायुमंडल का संशोधन करने के लिए। भारतीय संस्कृति में यज्ञ परम्परा के पीछे समग्र वैज्ञानिक आधार है।

आग जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है और वह पेफड़ों को हानि पहुँचाती है, इस बात को हमारे ऋषि-मुनि भी जानते थे। वे इस तथ्य से अनजान नहीं थे, लेकिन उन्होंने प्रत्येक विज्ञान के साथ वायु विज्ञान का भी अनुसंधान किया था। उन्होंने यह पता कर लिया था कि यज्ञ द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड कम और लाभदायक तत्व प्रचुरता के साथ उत्पन्न होते हैं, इसलिए उन्होंने यज्ञ को श्रेष्ठ कर्म बताया। भारतीय आयुर्वेदाचार्यों, जैसे धन्वन्तरि, चरक, सुश्रुत, बाणभट्ट आदि सभी ने यज्ञ-चिकित्सा को उच्च कोटि का माना है। ऋषियों ने उसे आत्मोत्कर्ष का साधन ही माना है। मनोविकारों से ग्रसित लोग अपने लिए तथा दूसरों के लिए अनेक समस्याएँ पैदा करते हैं। शारीरिक रोगों का तो इलाज है, पर मनोविकारों की कोई चिकित्सा अभी तक नहीं मिल सकी है।

अनेक प्रदूषणों के कारण इन दिनों शारीरिक रोगों से अधिक मानसिक रोग की समस्या है। व्यक्तित्व को विकृत बनाने वाली सनक तथा आदतें मानसिक बीमारियाँ हैं, ये मनुष्य को अर्धविक्षिप्त बनाए रखती हैं। यदि किसी प्रदूषण के कारण शरीर को ऑक्सीजन कम मिले, अशुद्ध वायुमंडल में उसका अंश कम हो तो शारीरिक बीमारियों के अतिरिक्त मानसिक विकृतियाँ भी हो जाती हैं। लड़खड़ाकर बोलना, आंत्रशोथ, चिड़चिड़ापन, थकावट, भय और आशंका जैसे मनोविकार इसी स्थिति के परिणाम हैं। ऐसा व्यक्ति स्वयं दुःख भोगता और दूसरों को भी दुःख देता है। यज्ञोपचार द्वारा मानसिक रोगों का इलाज संभव है। मानसिक रोगों में यज्ञ चिकित्सा द्वारा सफल इलाज होता है। बस वायु मिश्रित औषधियों का धुआँ शरीर में नासिका मार्ग द्वारा ही प्रवेश करना चाहिए। मस्तिष्कीय रोगों की चिकित्सा अभी प्रारंभिक अवस्था में चल रही है। सनकी, शंकालु, भयभीत, उत्तेजित, अधीर, दुराग्रही, क्रोधी, दिग्भ्रांत, चिन्तित, लोभी, अहंकारी स्तर के लोग शारीरिक रोगियों से भी अधिक कष्ट सहते और कष्ट देते हैं। इनका इलाज कहीं किसी चिकित्सा पद्धति में नहीं है,

ऑक्सीजन की समुचित मात्रा कोशिकाओं को किसी वजह से न मिले तो मस्तिष्कीय विकृतियाँ उत्पन्न होंगी। यज्ञ द्वारा उत्पन्न हुई गैसें उपचार प्रस्तुत करती हैं, जो अनेक मानसिक व्याधियों के इलाज में सहायक होती हैं। यज्ञ द्वारा उन्माद, अपस्मार, सिरदर्द जैसे प्रत्यक्ष रोगों का उपचार हो सकता है। वायु के प्रभाव से होने वाले रोगों में मानसिक रोगों के अतिरिक्त श्वास नली के रोग आते हैं। यज्ञ चिकित्सा इन सभी तंत्रों को सीधे प्रभावित करने के कारण अपना लाभ अधिक मात्रा में और कम समय में प्रस्तुत कर सकती है। औषधि विज्ञान की मान्यता है कि रोग विषाणुओं से उत्पन्न होते हैं, इसलिए उन्हें मारने वाली प्रक्रिया अपनानी चाहिए। एलोपैथी में अधिकतर दवाइयों के साइड इपेÂक्ट होते हैं। देखा जाता है कि एलोपैथी उपचार से स्वस्थ होने के उपरांत भी कई दिनों तक व्यक्ति बीमार दिखता है। यह कठिनाई यज्ञ चिकित्सा में नहीं है, क्योंकि हवन में जो हवष्यि होम किए जाते हैं, वे सभी परिशोधन एवं परिपोषण प्रकृति के होते हैं। इसलिए उपचार ऐसा होना चाहिए, जिससे हर स्तर की दुर्बलता घटती और शक्ति बढ़ती हो।

Hawan

यज्ञ सामग्री / हवन सामग्री

यज्ञ में यदि कार्बन डाई ऑक्साइड असीमित गति से निकलती होती तो वहाँ पर भला किसी का बैठा रहना क्या सरल होता? किसी थोड़े स्थान पर अधिक संख्या में जनता के एकत्र होने पर दम घुटने लगता है, लोग तुरन्त वहाँ से भागने लगते हैं, किन्तु यज्ञ में ऐसा नहीं होता, प्रत्युत यज्ञ की सुरभि से जन-जन का मनमयूर प्रफुल्लित होकर नाच उठता है। यह सम्भव होता है, उस अनुपम उत्तम हवन सामग्री से, जिसको आहुतियों के रूप में अर्पित किया जाता है। यह हवन सामग्री पुष्टिकारक, सुगन्धित, मिष्ट एवं रोगनाशक वनस्पतिक पदार्थों के रेशेदार मोटे मिश्रण से बनायी जाती है, जिससे न तो सामग्री उड़कर इधर-उधर गिरती है और न श्वास के माध्यम से कोई अवरोध उत्पन्न करती है और उसका गैसीय गुण कई गुना बढ़कर वातावरण को पुष्ट, सुरभित, मधुर व आरोग्य गुणों से परिपूर्ण कर देता है। सामग्री के मोटा कूटे जाने का लाभ यह होता है कि उसमें वायु संचार होने से कृमि शीघ्र नहीं पड़ते हैं और यज्ञकुण्ड में सामग्री ठोस न होकर बिखरी रहकर अच्छी जलती है।

केसर में एक रंगद्रव्य, तेल, कोसीन नामक ग्लूकोसाइड तथा शर्करा होती है। हवन में इसका प्रयोग मस्तिष्क को बल देता है। चंदन की समिधाओं से हवन करने से वायुमण्डल शुद्ध एवं सुगंधित होता है। यह शामक, दुर्गन्धहर, दाहप्रशमन तथा रक्तशोधक होता है। हवन में इसका प्रयोग मानसिक व्यग्रता तथा दुर्बलता को दूर करने के लिए किया जाता है। ब्राह्मी का यज्ञ में प्रयोग मेधावर्धक होता है साथ ही मानसिक विकार, रक्त, श्वास, त्वचा संबंधी रोगों का निवारक होता है। इसमें मस्तिष्कीय संरचनाओं के लिए उपयोगी आजोब्रालिक एसिड होता है। सतावरी का हवन वात, पित्त विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है। अश्वगंधा में ग्लाइकोसाइड, स्टार्च, शर्करा पायी जाती है यह बलदायक होता है। वट वृक्ष की समिधाओं का प्रयोग रक्त विकारों को मुक्त करने के लिए होता है। कपूर के धुएँ में नजलानाशक गुण होता है शक्कर का हवन हैजा, टी.बी. चेचक आदि बीमारियों को शीघ्र नष्ट करता है। गुग्गल शरीर के अन्दर के कृमियों को मारता है। इस प्रकार यज्ञ में अनेक वनोषधियों का प्रयोग अनेक बीमारियों से हमें बचाता है साथ ही वातावरण को शुद्ध एवं सुगन्धमय बनाता है।

देवीय हवन सामग्री निम्नानुसार हैं- काले तिल, चावल, जौ, शकर, कमलगट्टे, मखाने, कपूर काचरी, जावित्री, अगर-तगर, जायफल, नागर-मोथा, भोजपत्र, जटा माँसी, सूखी-बीला, छाल-छवीला, रक्त चंदन, चन्दन बूरा, गुगल, पीली सरसों, काली मिर्च, गन्ने, पालक, अनार, बिजोरा नींबू मुरा, जटामांसी, वच, कुष्ठ, शिलाजीत, दारु, हल्दी, सठी, चम्पक, मुरता, सर्वोमधी। अर्क, उपमार्ग, शमी, कुशा, खैर, दूर्वा, इलायची, शकर, मिश्री, पीपल का पत्ता, उड़द दाल, समुद्र का झाग, राई, लाजा, सहदेवी पुष्प, भांग, बरक गुंजा, कपूर, शंखपुष्पी, पान, मधु, केला, भैंसा गुगल, नीम गिलोय, जायफल, आंवला, विष्णुकांता, आम्रफल, लोंग, हरताल, कटहल, कागजी निंबू, मेनसिल, शिलाजीत, खिरणी, सिंघाड़ा, वच सुगंधित द्रव्य, अष्टांग धूप, पायस, गुलकंद शतावरी, सौंठ, अबीर, केशर, दालचीनी, काली हल्दी, कस्तूरी, वङ्कादन्ती, मोर पंखी, शिव लिंगी, आमी हल्दी, कपीठ (चूक) पटपत्र, मालकांगणी, मक्खन, अनार के फूल, फल नारंगी, नागकेशर, फूलप्रयंगु, अशोक के पुष्प या पत्र, बिल्वपत्र।