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पौधों पर आधारित चिकित्सा पद्धति

विश्व में अब तक जितनी भी चिकित्सा पद्धति विकसित हुई है उसमें सबसे प्राचीन पद्धति सर्वप्रथम लगभग 5000 वर्ष पूर्व भारत में आयुर्वेद के रूप में विकसित प्रचलित हुई चिकित्सा के क्षेत्र में अनेकों
अनुसंधान हुए एवं उनकी उपलब्धियां भी प्राप्त हुई हैं पर आज भी दुनिया की एक तिहाई आबादी पौधों पर आधारित चिकित्सा पद्धति पर ही निर्भर है डब्ल्यूएचओ के अनुसार लगभग 80% जनसंख्या पूरे विश्व की आज भी औषधीय पादपो का आंशिक या पूर्णतया उपयोग कर रही है ऋग्वेद ही आयुर्वेद का उद्गम है तथा अथर्ववेद में वन औषधि द्वारा चिकित्सा के विषय में सामग्री है यज्ञ विज्ञान से ओषघ का उपयोग सर्वप्रथम वेदों से ही प्राप्त होता है रस वीर्य युक्त जड़ी बूटियो का ज्ञान हमारे देश में वैदिक काल से ही रहा है अरण्य वन उपवन और जैव विविधता से परिपूर्ण इस भारत देश में गुरुकुलो द्वारा एवं छोटे से ग्राम से लेकर नगरों तक ग्राम वासियों आदिवासियों से लेकर नगर वासियों तक प्रकृति एवं पौधों से प्रेम आदी काल से ही था आज भी
हम अपने दैनिक जीवन में देखते-सुनते हैं कि किसी को पेट दर्द होने पर या गैस होने पर अजवायन, हींग आदि लेने को कहा जाता है; खाँसी-जुकाम, गला खराब होने पर कहा जाता है कि ठण्डा पानी न पियो; अदरक, तुलसी की चाय, तुलसी एवं काली मिर्च या शहद और अदरक का रस, अथवा दूध व हल्दी ले लो, आदि। अमुक चीज की प्रकृति ठण्डी है या गर्म, इस प्रकार के सभी निर्देश आयुर्वेद के ही अंग हैं। इस प्रकार हम अपने बुजुर्गों से पीढ़ी दर पीढ़ी घर में प्रयुक्त होने वाले पदार्थ़ों के औषधीय गुणों के विषय में सीखते चले आ रहे हैं। हमें अपने घर के आँगन अथवा रसोई घर से ही ऐसे अनेक पदार्थ मिल जाते हैं, जिन्हें हम औषधि के रूप में प्रयुक्त कर सकते हैं। इस प्रकार हम इस आयुर्वेदीय पद्धति को अपने जीवन से अलग कर ही नहीं सकते ।
आयुर्वेद लिखनेवाले पुरुष को आप्त कहा जाता है, जिनको त्रिकाल (भूत, वर्तमान, भविष्य) का ज्ञान था। आयुर्वेद मतलब जीवनविज्ञान है। अतः यह सिर्फ एक चिकित्सा-पद्धति नहीं है, जीवन से सम्बधित हर समस्या का समाधान इसमें समाहित है।
आयुर्वेद एक संस्कृत शब्द है जिसको हिंदी में अनुवाद करें तो उसका अर्थ होता है “जीवन का विज्ञान” (संस्कृत मे मूल शब्द आयुर का अर्थ होता है “दीर्घ आयु” या आयु और वेद का अर्थ होता हैं “विज्ञान”।

आयुर्वेद महज जड़ी-बूटी नही यदि आपका मन, शरीर और आत्मा में ये सार्वलौकिक तालमेल बना रहता है, तो आपका स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
आयुर्वेद मानव शरीर और मस्तिष्क के कल्याण में सुधार करते हैं शारीरिक रोगों का प्रभाव मन पर पड़ता है एंव मानसिक रोगों का प्रभाव शरीर पर पड़ता है. इसीलिए सभी रोगों को मनो-दैहिक मानते हुए चिकित्सा की जाती है.
इसी तरह मनो दैहिक को जड़ी बूटियों के साथ कैसे व्याख्यीत किया इसे अंग्रेजी मैं देखें
medicinal plants described in Ayurveda (Indian system of medicine) with multi-fold benefits, specifically to improve memory and intellect by Prabhava (specific action). Medha means intellect and/or retention and Rasayana means therapeutic procedure or preparation that on regular practice will boost nourishment, health, memory, intellect, immunity and hence longevity.

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उपरोक्त उपयोग की जाने वाली जड़ी बूटियां किन गुणों से संबंधित है
सवाल करें अपने आप से
उद्देश्य पर विचार अवश्य करे
ईश्वर से कनेक्ट करने वाला माध्यम स्वयं से स्वयं का कनेक्शन करवानै बांधने वाला माध्यम
यह शुभकामनाओं प्रसन्नता प्रफुल्लता उत्साह उमंग उर्जा समृद्धि वह ओज तेज पवित्रता शक्ति संपन्नता सकारात्मकता दृढ़ता चेतनयता संबल सफलता
लोक कल्याण जैसे शब्दों से संबंधित है
प्रकृति से कैसे जुड़े प्राकृतिक हल कैसे ढूंढे प्रकृति पोषक तत्त्व माध्यम से प्रकृति पोषक तत्त्वों द्वारा
सवाल ये उठता है की के जड़ी बूटियां पूजा पाठ धूप यज्ञ हवन में उपयोग की जाती है उसका उद्देश्य क्या है क्यों है वह क्यों हमारे जीवन पर्यावरण से जुड़ी है
सबसे पहली बात क्या यह हमारे स्वास्थ्य से संबंधित है
क्या यह वातावरण से संबंधित है वातावरण में व्याप्त हानिकारक वायरस कीटाणु फंगस बैक्टीरिया से संबंधित है क्या यह रोग प्रतिरोधी क्षमता हमारी प्रतिरक्षा क्षमता से संबंधित है क्या यह हमारे बुद्धि विकास से संबंधित है
क्या यह सुगंध चिकित्सा से संबंधित है
क्या यहां पर्यावरण में व्याप्त हानिकारक गैसों की निष्क्रियता से संबंधित है एवं पर्यावरणीय प्रभाव से मनुष्य में देवत्व कल्पना से संबंधित है
क्या यह हमारे मानसिक व शारीरिक दोनों से विपरीत प्रभाव रोगाणु विषाणु के दानों को हटाने से संबंधित है क्या यह पंचभूत हवा पानी भोजन भूमि आकाश की शुद्धता से संबंधित है
क्या यह मेटाबॉलिज्म ऑक्सीजन बायोडायवर्सिटी से संबंधित है
क्या यह पूजा पाठ 16 संस्कार का सशक्त अनिवार्य अभिन्न माध्यम है क्या यह ग्रह नक्षत्र देवी देवता प्रतिनिधित्व प्रसन्नता से संबंधित है
क्या यार डर भय अस्वाद बाधा तनाव नकारात्मकता जादू टोना ग्रह दोष पित्र दोष वास्तु दोष नजर दोष कालसर्प दोष की रक्षा से संबंधित है
क्या यह कार्य सिद्धि विजय प्राप्ति संकल्प सिद्धि बुद्धि विकास मानसिक शारीरिक बीमारियों का इलाज से संबंधित है
क्या यह सकारात्मक शुभता तेजस्विता औरा सप्त चक्र प्राण ऊर्जा ब्रह्म तेज से संबंधित है
यदि हां तो सही सामाग्री उद्देश्य के लिए आवाश्यक है।

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गलत धूप हवन सामग्री के दुष्परिणाम ।

भारतीय वैज्ञानिक संस्कृति ओर आज का
दुरुपयोग
गलत सामग्रियों से या धूपबत्ती अगरबत्ती से अनेक संकट खड़े होते हैं
इससे कार्बन के ऑक्साइड सल्फर के ऑक्साइड नाइट्रोजन के ऑक्साइड टॉल्युन बेंजीन सिंथेटिक रसायन बनते हैं इसके धुएं से सांद्रता बढ़ती है प्रदूषण होता है फेफड़े पर बुरा असर पड़ता है अनेक रोग उत्पन्न हो सकते हैं ऐसे कई निरंतर प्रयोगों के कारण में अनेक दुष्परिणामों की बात हुई है बीमारियों में अनेक प्रकार से वृद्धि हुई है बच्चे बूढ़े ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं यह धूआ सिगरेट के धुए से भी ज्यादा खतरनाक है ब्रिटिश लंगस फाउंडेशन के डॉक्टर निक रॉबिंसन अनुसार पाली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बंस पीएएच से
अस्थमा कैंसर सिरदर्द बेचैनी घबराहट बढ़ जाती है अगरबत्ती में बैंजो पाईटैन न्यूटाडाईन
बेंजीन इन रसायनों से ल्यूकेमिया एलर्जी फेफड़ों के रोग होते हैं प्रजनन क्षमता कम होती है इसी तरह बास में लेड और खुशबू के लिए डाले गए केमिकल फैतलेट मिलकर रोग उत्पन्न करते हैं हमारे घर ऑफिस फैक्ट्री मंदिर में विज्ञान असम्मत उद्देश्य हीन प्रदूषण कारक भगवान देवी देवता को अप्रसन्नता देने वाली रोग कारी मानसिक अस्वस्थता देने वाली अगरबत्ती धूप बत्ती का प्रयोग हमें बिल्कुल नहीं करना चाहिए शुद्ध असली प्राकृतिक जड़ी बूटियों का ही उपयोग जो शास्त्र सम्मत है करना चाहिए
धूप यज्ञ हवन सभी व्यक्ति कभी ना कभी किसी ना किसी समय अवश्य करते हैं करवाते हैं और उसके संपर्क में प्रतिदिन रहते हैं हम हमेशा कोई न कोई पूजा संस्कार करवाते हैं या कुन संस्कारों में सम्मिलित होते हैं पर आज यह सब कर तो रहे हैं लेकिन उस पर ध्यान देने विचार करने का समय किसी के पास नहीं है हमने इसे एक इवेंट बना दिया इवेंट प्रोग्राम की तरह इसे देखने लगे हैं इसके पीछे की मूल भावना भूल गए हैं उद्देश्य से भटक गए हम सिंबॉलिक पूजा कर रहे हैं क्या ?
हमारा ध्यान इवेंट की व्यवस्था डेकोरेशन सजावट खाना पीना मेहमान नवाजी पर ज्यादा है जबकि जिस कारण यह सब इवेंट हो रहा है वह एक सिंबल बन गया है बहाना बन गया है ऐसा क्यों
पूजा पाठ हमारे संस्कार हमारी असलियत के बारे में इसके पीछे छिपे उद्देश्य के बारे में हम जानने का प्रयास ही नहीं कर रहे हैं इसे धर्म के साथ क्यों जोड़ा गया इसके पीछे क्या भावना है क्या यह हमारे जीवन से जुड़ी कोई बड़ी बात है इसे इतना महत्त्वपूर्ण हमारे ऋषि-मुनियों ने संस्कारों में क्यों जोड़ कर रखा है क्या यह सब हमारे स्वास्थ्य से संबंधित है व्यक्ति अपने जीवन में अनेकों बार विभिन्न अवसरों पर धूप यज्ञ हवन के संपर्क में आता है हमारे उत्सव प्रिय यज्ञिय देश में सभी जगह कुछ ना कुछ धार्मिक कार्य होते ही रहते हैं हम स्वयं या हमारे मित्र रिश्तेदार कुछ ना कुछ हमेशा संस्कार करवाते ही रहते हैं सभी 16 संस्कारों में हवन आवश्यक है हम लोग अशुभ से डरने पर हवन करवाते हैं किसी भी प्रकार की बाधा को दूर करने के लिए हवन करवाते हैं भाग्य का साथ ना देने या अड़चन अाने पर हवन करवाते हैं कार्य सिद्धि मनोकामना पूरी होने पर हवन करवाते हैं मंदिर धार्मिक कार्य में सम्मिलित होने पर हम हवन के संपर्क में आते हैं किसी प्रतिष्ठान का उद्घाटन भूमि पूजन धार्मिक कार्य होने पर हम हवन के संपर्क में आते हैं गृह प्रवेश विवाह संस्कार होने पर हम हवन के संपर्क में आते हैं यह हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है किसी भी खुशी यह संकट के समय हवन होना सामान्य सी बात है यही धार्मिक कार्य में उपयोग होने वाली हवन सामग्री हमें हमारे स्वास्थ्य एवं वातावरण के स्वास्थ्य को ठीक करती है पंच तत्वों को शुद्ध करती है पंच तत्व से बना शरीर की शुद्धि होती है
इसी से हमें मानसिक अनुकूलता ऊर्जा प्राप्त होती है
वैदिक व्यवहार पूजा पाठ आराधना ध्यान यह सब स्वस्थ मानसिक शारीरिक वैचारिक उन्नति स्वास्थ्य संरक्षण के लिए है ऐसी चीजों का प्रयोग उपयोग जिसके माध्यम से हम स्वस्थ व प्रसन्न चित्त रहें ऐसी हमारी संस्कृति है जीवन जीने की पद्धति प्रकृति पूजा हमारा व्यवहार जीवन का सदुपयोग संयमित उपभोग संतुलित प्रेम पूर्ण जीवन यह हमारी संस्कृति है मनुष्य के कार्य की विज्ञान सम्मत चीजों को जड़ी बूटियों को हमारे ऋषि-मुनियों ने धर्म से कैसे जोड़ा आइए अब हम इस पर विचार करते हैं
हमारे वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों ने अनेक पेड़ पौधों वनस्पतियों को भगवान से धर्म से जोड़ दिया जो वनस्पतियां हमारे लिए अत्यंत लाभकारी हैं उन्हें धर्म से जोड़कर उसके संतुलित उपयोग की सलाह हमें दी गई इन्हीं जड़ी बूटियों से हमें संक्रमण से मुक्ति रोगाणु विषाणु कीटाणुओं का नाश एवं बल बुद्धि आरोग्यता सकारात्मकता दिव्यता प्राप्त होती है ऐसी जड़ी बूटियों को धूप यज्ञ हवन में उपयोग कर हम स्वयं एवं सभी प्राणी कैसे उपकृत हो सकते हैं यह बताया।
भले ही स्वार्थ वश उपयोग हो पर सभी के लिए कल्याणकारी हो
आप सभी स्वस्थ प्रसन्न रहें कामना भावना के साथ धर्म से जोड़ा गया

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पूजन धूप यज्ञ हवन में कौनसी केसी जड़ी बूटियां होनी चहिए।

धूप यज्ञ हवन मैं उपयोग की जाने वाली फायदा पहुंचाने वाली कौन-कौन सी जड़ी बूटियां का काम कहां कहां होना चाहिए किस क्षेत्र में वे उपयोगी हैं ऐसा विचार हमें करना है।
हमें अपने आप से कुछ सवाल भी करने पड़ेंगे
हमारी सामग्री में क्या उपयोगी है
निरोगी शरीर बल बुद्धि पॉजिटिविटी के लिए जड़ी बूटियां विज्ञान सम्मत स्वास्थ्य का संरक्षण करने वाली माइंडफूलनेस
वैलनेस वाली जड़ी बूटियां
हमें पूजा पाठ का मूल उद्देश्य भी समझना होगा ध्यान पूजा में हम अपने आप को अपने आप से कनेक्ट करते हैं हम अपने आप से मिलते हैं और उस कंसंट्रेशन उस रिलाइजेशन उस कनेक्शन को हम अपने आप में डिस्कवर करते हैं माय बॉडी एंड मी
नवचेतना स्वयं का अंतर्मन अंतरात्मा अंतः करण से मिलना अपनी ही आत्मा का अध्ययन करना इन सब में जो माध्यम जो उत्प्रेरक जो कंपनियन मटेरियल हमें सहायता करें जो self-realization में सहायक हो ऐसे माध्यम के लिए कौन-कौन से क्षेत्रों में काम करने वाली जड़ी बूटियां जो ग्रह नक्षत्र देवी देवता का भी प्रतिनिधित्व करें आइए मंथन करें
पूजा में जो धूप जलाते हैं हवन करते हैं उसकी सामग्री से हम क्या चाहते हैं क्यों वह शुद्ध फ्रेश बिना तेल निकली हुई रसपूर्ण असली जड़ी बूटियां होनी चाहिए
जड़ी बूटियों में एंटीवायरस एंटीवायरल बैक्टीरिया एंटीफंगल हेलमाइंथिक एंटी डिप्रेशन एंटी एलर्जी एंटी ऑक्सीडेंट एंटी रेडिएशन एंटीसेप्टिक एंटीऑक्सीडेंट जड़ी बूटियां होना आवश्यक है एंटीमाइक्रोबियल्स एक्टिविटी और एंटीबायोटिक गुणों से युक्त जड़ी बूटियां चतुर्मास वर्षा ऋतु के सीलन सडन को दूर करने वाली मौसम के परिवर्तन पर उत्पन्न होने वाले वायरस कीटाणु फंगस बैक्टीरिया से रक्षा करने वाली जड़ी बूटियां एवं मौसम परिवर्तन के रोगों से रक्षा करने वाली जड़ी बूटियां
ऐसी जड़ी बूटियों का समावेश जो मानसिक स्वास्थ्य को ठीक कर सके जिससे
हमारे अंदर की बुरी भावना अस्वाद डलनेस घबराहट झुनझुनाहट सनकी पन ड्रामा फ्रस्ट्रेशन बेचैनी याददाश्त नफरत डिप्रेशन ठीक हो सके न्यूरो रिलैक्सेशन हो मानसिक स्वास्थ्य सौरक्षण हो मानसिक दृढ़ता स्ट्रांगनेस आए
सुगंधी युक्त सौम्या वातावरण उत्पन्न हो सुगंध चिकित्सा हो ऐसी मूड फ्रेशनर जड़ी बूटियां
वातावरण प्रदूषण मुक्त हो प्रदूषण में व्याप्त अनेक अलग-अलग प्रकार का प्रदूषण ठीक हो पंचतत्व शुद्धि करण सैनिटाइजेशन डिटॉक्सिफिकेशन
मेटाबॉलिज्म ठीक कर रेगुलेट कर ऑक्सीजन की वृद्धि करे ऐसी जड़ी बूटियां धूम्र चिकित्सा द्वारा रक्त संचालन ठीक हो शरीर के रोम छिद्रों द्वारा सांसो द्वारा शरीर के सभी अबयव को निरोगी करने वाली पहुंचाने वाली एवं बलवर्धक पुष्टि कारण संक्रमण से रक्षा करने वाली अच्छे आयनों की संख्या बढ़ाने वाली प्रतिरक्षण क्षमता को विकसित करने वाली जड़ी बूटियां
साथ ही सर्व कल्याणकारी सर्व औषधी सफलता तंत्र प्रतिनिधित्व करती हुई कार्य सिद्धि विजय प्राप्ति एवं विशेष प्रयोजन के लिए उपयोग की जाने वाली अनेक जड़ी बूटियां
इसी प्रकार जादू टोना नजर ऊपरी बाधा हाय कला वास्तु दोष पित्र दोष दुर्घटना से बचाव रक्षाकारी सर्व कल्याणकारी जड़ी बूटियां साथ ऊर्जा उत्साह उमंग प्रसन्नता का वातावरण निर्मित करने वाली जड़ी बूटियां ऐसी सामग्री से बनी धूप यज्ञ हवन सामग्री हमारे लिए सर्व कल्याणकारी सभी प्राणियों पर समान रूप से शुभ लाभ देने वाली ही हो।

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जैवविविधता और यज्ञ

सनातन संस्कृति और परंपरा ।

हम भारतीय प्राचीन काल से ही वनों वृक्षों नदियों और जीवन के विविध रूपों को अपने सभी समारोह में सभी उत्सव में शामिल करते हैं पृथ्वी मिट्टी हवा पानी नदियां पशु-पक्षी कृषिऔर जीवन के अनेक रंग रूप उसकी पवित्रता की सुरभि भारतीय संस्कृति में समाहित है लगभग 5000 वर्ष पूर्व हमारे पौधों की 5000 प्रजातियों से हम भोजन चुनते थे साथी अनेकों किस्म में हमारे खेतों में थी लंबे इतिहास में भारतीय जैव विविधता हर तरफ से सराबोर रही है और समृद्ध रही हैं।
हमारे यहां जैव विविधता का विशेष महत्व है हमारे यहां ऋषि-मुनियों ने इसे बड़े ही व्यवहारिक ढंग से
समझा
सूर्य चंद्र वायु अग्नि जल पृथ्वी औषधि वनस्पति अश्विनी मित्र वरुण विद्युत सरस्वती पूसा सविता प्राण आदि प्राकृतिक स्कूल एवं सूक्ष्म तत्व देवीय है यह दिन रात अपना भेषज कार्य करते रहते हैं वेद इन सब शक्तियों का उपयोग लेने का संकेत देता है इन तत्वों को विशेष क्रियाशील करने के लिए वेद यज्ञ के मार्ग का उपदेश देता है यह तत्व हमें जीवन आयु आरोग्य का एवं प्राण देवें और हमारे द्वारा संपन्न यज्ञ से व औषधियों के मधुर रस को पीने इस प्रकार जीवन एवं प्राण का उत्पत्ति केंद्र बनकर यज्ञ विभिन्न तत्वों के माध्यम से हमें लाभ पहुंचाता है।प्रकृति को देवी-देवताओं के रूप में स्वीकार करके उसके पूजन अर्चन आदर सम्मान और संरक्षण की शिक्षा हमारी संस्कृति हमें प्रदान करती है एवं उसके महत्व को स्वीकार करती है अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त के एक विचार के अनुसार हे धरती मां जो कुछ मैं तुमसे लूंगा वह उतना ही होगा जिसे तू पुनः पैदा कर सके तेरे मर्म स्थल पर या तेरी जीवन शक्ति पर कभी आघात नहीं करूंगा वायु देव की कल्पना वायु के महत्व को प्रकट करती है जिस के संबंध में कहा गया है की है वायु देव अपनी औषधियां ले आओ और यहां के सब दोष दूर कर दो क्योंकि तुम भी सब औषधियों से युक्त हो इसी तरह गाय भारतीयों का आधार हैभारत की प्रत्येक ऋतु में अनेक उत्सव समाहित हैं जो इस राष्ट्र को गतिमान उल्लास में और चिर युवा बनाए रखते हैं भारतीय संस्कृति यज्ञ प्रधान वेद रामायण महाभारत अभी धार्मिक तथा ऐतिहासिक ग्रंथों में यज्ञ को ही सर्वोच्च स्थान दिया गया है।

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शुद्ध असली सामग्रियो द्वारा धूप यज्ञ हवन से होने वाला अनुभव

जहां पर हवन हो रहा है वहां हमें क्या दिखता है नीचे कुछ लकड़ियां प्रज्वलित हैं और कंडे जो गाय के गोबर से बने हैं वह भी लकड़ी के साथ में जलते हुए दिख रहे हैं और ऊपर से विभिन्न वनस्पतियों औषधियों जड़ी बूटियों का मिश्रण डाला जा रहा है जिसमें धी गुड मिला हुआ है हमें एक और चीज दिख रही है ऊपर से चम्मच से गाय का घी भी डाला जा रहा है
चारों और का वातावरण आकर्षित कर रहा है हमें अच्छा अनुभव हो रहा है सुगंध युक्त सुरम्य वातावरण है इस श्रेयस वातावरण में बेचैनी घबराहट अधीर पन भय उदासी अकेलापन गिलानी विशाद नेगेटिविटी मानसिक थकान कम हो रही है चित्त शांत हो रहा है मन स्थिर हो रहा है मन की उदासी कम हो गई है और प्रफुल्लता महसूस हो रही है मैं स्वयं को स्वस्थ महसूस कर रहा हूं सकारात्मक तेजस्वी वातावरण में स्वयं को पाकर मैं खुश हूं चारों और ऊर्जा का अनुभव हो रहा है अच्छे विचार आने लगे हैं आंतरिक शक्ति का अनुभव हो रहा है जैसे कोई तेज उत्पन्न हो रहा हो बौद्धिक सोच उत्पन्न हो रही हो मेरे अंदर उत्पन्न परिवर्तन मुझे महसूस हो रहा है ऐसी अनुभूति है जैसे मेरी अभी-अभी चिकित्सा हुई है क्या मैं चिकित्सालय में खड़ा हूं हवा बदल गई है प्रकृति सुंदर लगने लगी है मैं स्वयं से मिल रहा हूं मेरे अंदर स्थिरता एकाग्रता आ चुकी है आनंद का अनुभव है यह दिव्य अनुभूति है जीवन आनंद है यह अनुभूति क्यों कैसे प्राप्त हुई इसका विचार मेरे मन में सवाल पैदा कर रहा था कि कुछ ही समय पूर्व जो मैं बेचैन था अब अच्छा महसूस कर रहा हूं ऐसा कैसे हुआ यह जानने की इच्छा यह प्रश्न अपने आप से ही करते हुए उसके उत्तर की खोज करने लगा जो यज्ञ हो रहा था मैंने पाया उसमें उच्च कोटि की सामग्री का प्रयोग था उसमें अनेकों प्रकार की औषधियां थी सुगंधित जड़ी बूटियां थी रोग प्रतिरोधी जड़ी बूटियों के साथ कई जड़ी बूटियां संक्रमण से लड़ने वाली थी वायरस कीटाणु फंगस कर्मी रोगाणु विषाणु को मारने वाली क्षमता की जड़ी बूटियां एवं पर्यावरण में व्याप्त अनेक विकृतियों को हटाकर उन्हें शुद्ध करने की क्षमता वाली जड़ी बूटियां थी पर्यावरण में व्याप्त अनेक प्रकार की हानिकारक गैसों से लड़ने की क्षमता इन जड़ी बूटियों में थी जिससे हवा जल आकाश भूमि शुद्ध हो रही थी भूमि पर रहने वाले सभी प्राणी पेड़ पौधे वनस्पतियां फसलें सभी उपकृत हो रहे थे फसलों पर हानिकारक कीटाणुओं का प्रभाव कम हुआ था पेड़ पौधे अधिक हष्ट पुष्ट उर्जा से युक्त पौष्टिक फल देने वाले ऊर्जावान थे धूप यज्ञ हवन का परिणाम यज्ञ में उपयोग किए जाने वाली जड़ी बूटियां इन सभी के प्रभाव से यह सब हो रहा था धी ज्वलनशील होने से वातावरण में ऑक्सीजन अधिक दे रहा था यज्ञ में उत्पन्न धूआ हमारे रोम रोम में समा रहा था दूध दही घी व अन्य सामग्री जो पूषठी कारक बल प्रदान करने वाली थी वह हमारी रोग प्रतिरोधी क्षमता का विकास कर रही थी मानसिक शक्ति का विकास हो रहा था यह सभी औषधीय जड़ी बूटियां हमारा सवांगणीया विकास एवं सुरक्षा देने वाली थी ऐसा लगा कि हम ऐसी महान संस्कृति परंपरा का हिस्सा है विज्ञान आयुर्वेदा कि यह प्रत्यक्ष प्रमाण सहित दर्शन था पंचमहाभूत शुद्ध हो चुके थे और पंच भूत से बना हमारा शरीर भी शुद्ध हो रहा था।