यज्ञीय देश ऐसा कई भारतीय बोलते हैं
यज्ञीय देश यज्ञीय वातावरण
यज्ञ करने वाले अनेक कर्मकांडी पंडितों से साक्षात्कार विद्वानों से पूछे गयै सामान्य प्रश्न
पंडित जी आपने अनेक यज्ञ हवन किए हैं धूप तो आप रोज ही लगाते हैं हानिकारक केमिकल से आप पर क्या असर होता है? धूप यज्ञ हवन सामग्री इसमें आप नीचे क्या जलाते हैं और ऊपर से क्या वनस्पतियां डालते हैं इस संबंध में हम आपसे बात करना चाहते हैं जिसका हमें प्रत्यक्ष अनुभव होता है आप जो नीचे जलाएंगे और ऊपर से वनस्पतियां डालेंगे उसका प्रभाव सर्वप्रथम वहां पर बैठे सभी लोगों पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ेगा सामग्री जड़ी बूटियां आप कैसे चयन करते हैं इसमें क्या होना चाहिए यह किस प्रकार असर करती है इसका क्या उद्देश्य है यह हमारा पहला प्रश्न है अधिकतर पंडित जी का जवाब था की सामग्री हम लिख कर देते हैं यजमान लाता है या वह हमें रुपए देते हैं और बाजार से हम रेडीमेड जो मिलती है वह लाते हैं उसी से यज्ञ होता है मैंने कहा अगर सामग्री सही नहीं होगी तो यजमान को नुकसान होगा वहां पर बैठना मुश्किल हो जाएगा सही सामग्री नहीं होने से परिणाम भी प्राप्त नहीं होगा जिस हेतु यज्ञ किया जा रहा है
यज्ञ हवन सामग्री का सही चयन यह आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है सही सामग्री नहीं होने से अनेक कष्ट होते हैं
पंडित जी से आगे बात करने पर मैंने कहा पंडित जी यजमान तो कभी-कभी ही यज्ञ करवाता है आप तो रोज यज्ञ करवाते होंगे इसका गलत सामग्रियों का प्रभाव आप पर सबसे पहले और सबसे ज्यादा पड़ेगा गलत सामग्रियों के संपर्क में रहने से आप बीमार पड़ेंगे वातावरण में प्रदूषण उत्पन्न होगा कचरा सामग्री केमिकल युक्त सामग्री से आपका स्वास्थ्य खराब होगा इस बात कै जवाब में पंडित जी ने कहा कि हमें सही सामग्री बाजार में नहीं मिलती है नकली तेल निकली हुई पुरानी जड़ी बूटियां ही मिलती हैं हम क्या करें
मैंने पंडित जी को कहा यह आपके स्वास्थ्य का सवाल है क्योंकि यज्ञ करना और करवाना एक चिकित्सालय खोलने के समान है इससे स्वास्थ्य का संरक्षण और प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित होती है शास्त्रों में यज्ञ को हवी भी कहते हैं जिसका अर्थ है विष को हरने वाला
पंडित जी के पास इस प्रश्न के कोई उत्तर नहीं थे
गलत सामग्रियों के प्रयोग से आंखें चलती हैं एलर्जी होती है दम घुटता है प्रदूषण फैलता है सांसों में संक्रमण होता है बेचैनी घबराहट होती है मन नहीं ठहरता ना ही भगवान से कनेक्शन होता है ना ही अपने आप से
भगवान भी कहते होंगे कि यह क्या हो रहा है
मेरा अगला प्रश्न पंडित जी से यह था की आपने अनेक यज्ञ किए और करवाएं कितनी सामग्री क्विंटल से आप होम चुके हैं क्या आपने कभी यज्ञीय वृक्ष लगवाए हैं यह मेरा अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न पंडित जी से था जिसका उत्तर अधिकतर पंडित जी नहीं दे पाए क्योंकि उन्होंने ऐसा कभी प्रयास नहीं किया था
यज्ञिय वृक्ष के प्रश्न पर पंडित जी ने कहा कि यह क्या होता है मैंने कहा पंडित जी जो वनस्पतियां जड़ी बूटियां आप हवन में उपयोग करते हैं वह पेड़ पौधों से ही तो हमें प्राप्त होती हैं उन पेड़ पौधों को हमें लगवाना चाहिए और यह कार्य सतत करते रहना चाहिए जिससे ऐसी वनस्पतियों का अभाव ना हो और वह हमेशा सुगमता से प्राप्त होती रहे ऐसी वनस्पतियां जो रोग नाशक हो ग्रह नक्षत्र देवी देवता से संबंधित हो वायरस कीटाणु फंगस बैक्टीरिया नाशक हो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएं जिससे सुगंध चिकित्सा हो जो रोगाणु विषाणु कीटाणुओं को नष्ट करने वाली हो जो पर्यावरण शुद्ध करने वाली हो ऐसी वनस्पतियां हमें लगवाना ही चाहिए यज्ञ का भैषज गुण वातावरण शुद्ध करता है इसी तरह जो वृक्ष यज्ञीय होते हैं उन वृक्षों से वातावरण अनेक प्रकार से शुद्ध होता है इन वृक्षों से छनकर जो हवाएं चलती हैं वह औषधीय गुणों से युक्त होती हैं जो हमारे स्वास्थ्य को उत्तम लाभ देती हैं आज धरती पर ऑक्सीजन की कमी से कई प्रकार की विकृतियां पैदा हो रही है शरीर का मेटाबॉलिज्म डिस्टर्ब हो रहा है मानसिक व्याधियों हो रही हैं पर्यावरण प्रदूषित होने से मनुष्य में मानसिक प्रदूषण बढ़ रहा है जिससे तनाव उत्पन्न हो रहा है सभी आत्म केंद्रित होते जा रहे हैं जबकि मनुष्य का भाग्य उसके वातावरण से जुड़ा है वह न केवल अपना भौतिक आहार बल्कि उससे सामाजिक प्रतिभा सूक्ति और आत्मीय वृद्धि भी प्राप्त करता है पंडित जी हमारे ऋषि-मुनियों ने क्या कहा क्यों धर्म से जोडा पहले साधन कम थे साधक ज्यादा थे अब साधन ज्यादा हैं साधक कम है ऐसा क्यों है? भारत में वैज्ञानिकों को ऋषि कहकर सम्मान देने की प्रथा रही है इतना ही नहीं वैज्ञानिक सिद्धांत का धर्म में इतना समावेश किया गया है कि उसे अलग करके नहीं देखा जा सकता वनों से आरोग्यता बढ़ती है 24 घंटों में मनुष्य 21600 बार सांस लेता है सांस का आवागमन हमेशा चलता रहता है उतनी ही बार रक्त शुद्ध होता है इस कारण योग्य तथा स्वाभाविक सांस चलना अति महत्व का है
पर्यावरण का धर्म रहस्यमयी विज्ञान है
वृक्षा हमारी शारीरिक मानसिक वैचारिकता
को प्रभावित करते हैं वनस्पति जड़ नहीं चेतना वनस्पति आध्यात्मिकता पैदा करती हैं मानवीय स्वास्थ्य हमारी देश की भौतिक तथा मानसिक स्थिति के साथ-साथ ऊर्जाईशविता पर भी निर्भर करता है जब हमारे चारों और का ऊर्जा क्षेत्र श्रेयस सकारात्मक प्रभावशाली होता है तो हम भी पूर्ण उत्साहित उल्लासित तेजस्वित एवं आनंदित रहते हैं इसलिए भूमि को हरा भरा हरिहर हरि मय बनाएं
भारतीय ऋषियों द्वारा स्थापित परंपरा आस्था मान्यता विश्वास संस्कृति पूजा पाठ धूप दीप यज्ञ हवन रहन-सहन खानपान उत्सव त्यौहार मौसम परिवर्तन सनातन सभ्यता अनुरूप बनाए हमारे वातावरण पर्यावरण प्रकृति अनुरूप बनाए जो हमारे जीवन जीने की पद्धति स्वास्थ्य रक्षा बुद्धि विकास और प्रगति के संतुलित उपयोग को ध्यान में रखकर बनाए गए थे
स्वयं से स्वयं को मिलाने वाला स्वास्थ्य संरक्षक माध्यम
इसी तरह का वातावरण यज्ञ में होमी गई शुद्ध वनस्पतियों से भी प्राप्त होता है यज्ञीय देश यज्ञीय वातावरण यज्ञीय वृक्ष वनस्पतियां जड़ी बूटियां उतनी ही आवश्यक है यज्ञ शेष भी इसीलिए अति उत्तम है उपयोगी है हमारे यहां बाग बगीचे लगवाना भी यज्ञ है इसका नाम ईषटापूर्त
यज्ञ है इसमें कुआ तालाब बनवाना भी सम्मिलित है इसी तरह शिव ही प्रकृति है और इसीलिए वृक्षों को पशुपति और पशुओं को प्रजापति कहा गया है गोमेघ यज्ञ से तात्पर्य है की भूमि को उर्वरा बनाकर वनस्पति उगने योग्य बनाना
मनुस्मृति मैं कहा गया है कि यज्ञ के संपर्क में आने से ब्राह्मणतव का उदय होता है क्योंकि यज्ञ की उषमा से व्यक्ति का संपर्क होने पर वह मनोविकार मुक्त होता है मनुष्य विचारशील बनता और चरित्रवान बनता है
अतः यज्ञ हवन सामग्री
हमारे लिए अत्यंत महत्व रखती हैं यह हमारे वैदिक व्यवहार को दर्शाती हैं
हमारी संस्कृति सभ्यता का अर्थ क्या है जीवन की शुद्धि और उससे जुड़ी समृद्धि ऋषियों ने हमें यही सीख दी
यज्ञ हवन सर्व कल्याणकारी है और वृक्षारोपण अत्यंत आवश्यक
विचार अवश्य कीजिएगा।