yagya vigyan

जैवविविधता और यज्ञ

सनातन संस्कृति और परंपरा ।

हम भारतीय प्राचीन काल से ही वनों वृक्षों नदियों और जीवन के विविध रूपों को अपने सभी समारोह में सभी उत्सव में शामिल करते हैं पृथ्वी मिट्टी हवा पानी नदियां पशु-पक्षी कृषिऔर जीवन के अनेक रंग रूप उसकी पवित्रता की सुरभि भारतीय संस्कृति में समाहित है लगभग 5000 वर्ष पूर्व हमारे पौधों की 5000 प्रजातियों से हम भोजन चुनते थे साथी अनेकों किस्म में हमारे खेतों में थी लंबे इतिहास में भारतीय जैव विविधता हर तरफ से सराबोर रही है और समृद्ध रही हैं।
हमारे यहां जैव विविधता का विशेष महत्व है हमारे यहां ऋषि-मुनियों ने इसे बड़े ही व्यवहारिक ढंग से
समझा
सूर्य चंद्र वायु अग्नि जल पृथ्वी औषधि वनस्पति अश्विनी मित्र वरुण विद्युत सरस्वती पूसा सविता प्राण आदि प्राकृतिक स्कूल एवं सूक्ष्म तत्व देवीय है यह दिन रात अपना भेषज कार्य करते रहते हैं वेद इन सब शक्तियों का उपयोग लेने का संकेत देता है इन तत्वों को विशेष क्रियाशील करने के लिए वेद यज्ञ के मार्ग का उपदेश देता है यह तत्व हमें जीवन आयु आरोग्य का एवं प्राण देवें और हमारे द्वारा संपन्न यज्ञ से व औषधियों के मधुर रस को पीने इस प्रकार जीवन एवं प्राण का उत्पत्ति केंद्र बनकर यज्ञ विभिन्न तत्वों के माध्यम से हमें लाभ पहुंचाता है।प्रकृति को देवी-देवताओं के रूप में स्वीकार करके उसके पूजन अर्चन आदर सम्मान और संरक्षण की शिक्षा हमारी संस्कृति हमें प्रदान करती है एवं उसके महत्व को स्वीकार करती है अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त के एक विचार के अनुसार हे धरती मां जो कुछ मैं तुमसे लूंगा वह उतना ही होगा जिसे तू पुनः पैदा कर सके तेरे मर्म स्थल पर या तेरी जीवन शक्ति पर कभी आघात नहीं करूंगा वायु देव की कल्पना वायु के महत्व को प्रकट करती है जिस के संबंध में कहा गया है की है वायु देव अपनी औषधियां ले आओ और यहां के सब दोष दूर कर दो क्योंकि तुम भी सब औषधियों से युक्त हो इसी तरह गाय भारतीयों का आधार हैभारत की प्रत्येक ऋतु में अनेक उत्सव समाहित हैं जो इस राष्ट्र को गतिमान उल्लास में और चिर युवा बनाए रखते हैं भारतीय संस्कृति यज्ञ प्रधान वेद रामायण महाभारत अभी धार्मिक तथा ऐतिहासिक ग्रंथों में यज्ञ को ही सर्वोच्च स्थान दिया गया है।